कंकड़-पत्थरों की पिच ने सिखाया इस खिलाड़ी को ऐसा जादू

 

अल्मोड़ा। "हार और जीत एक सिक्के के दो पहलू हैं। फिर चाहे वो जंग का मैदान हो या खेल का, फर्क नहीं पड़ता।" फौज से रिटायर पिता जब घर पर इन लफ्जों में हौसला अफजाई करते थे तो पहाड़ की "पिच" पर दिन भर धूल-मिट्टी से सनकर वापस आने वाली बिटिया एकता बिष्ट की सारी थकावट छू मंतर हो जाती थी। ऊबड़-खाबड़ मैदानों में रबर की गेंद को घुमाने (स्पिन) का हुनर विकसित करने वाली एकता ने महिला विश्व कप में रविवार को इंग्लैंड के डर्बी में पाकिस्तान के खिलाफ जो प्रदर्शन किया उसके बाद पूरा देश उन्हें सलाम कर रहा है।

बुधवार को श्रीलंका के खिलाफ मैच में भी परिजनों के साथ ही देशवासियों को एकता से एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद है।

परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने एकता को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। अल्मोड़ा के खजांची मोहल्ले में जन्मी एकता का हुक्काक्लब रामलीला मैदान से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम तक पहुंचने का सफर चुनौती भरा रहा है।

पिता हवलदार कुंदन सिंह 1988 में कुमाऊं रेजीमेंट (केआरसी) से सेवानिवृत होकर घर लौटे, लेकिन पेंशन इतनी ज्यादा नहीं थी कि परिवार की जरूरतें पूरी हो सकें। एकता का क्रिकेट के प्रति रुझान देखकर वह मान चुके थे कि बेटी का भविष्य इसी खेल में है। पांच साल की उम्र में एकता ने मोहल्ले में लड़कों के साथ खेलना शुरू किया।

2005 में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय जूनियर टीम के अभ्यास सत्र में एकता को मैसूर भेजने के लिए पिता ने अपने चचेरे भाई नर सिंह से पांच हजार रुपए उधार लिए। हालांकि चोटिल होने के कारण एकता तब पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेल पाई।

एडम्स इंटर कॉलेज से 12वीं करने के बाद जब एकता कुमाऊं विश्वविद्यालय पहुंचीं तो 2007-08 में विश्वविद्यालय टीम की कप्तान बनीं। 2007 में चैलेंजर कप के लिए भारत "ए" टीम से खेलने मुंबई गई।

यहां भी पिता ने बेटी के सामने पैसे की कमी आड़े नहीं आने दी। उन्होंने बीच में खर्च चलाने के लिए चाय की दुकान भी खोली। पिता अपना फर्ज पूरा कर रहे थे। वहीं, कोच लियाकत अली ने ने भी एक अच्छे गुरु की भूमिका निभाई। उन्होंने न सिर्फ एकता को अच्छा गेंदबाज बनाया, बल्कि दस हजार रुपए एकत्र कर उसे 2010 में विश्व कप के लिए बेंगलुरु में लगे कैंप के लिए भेजा। हालांकि तब वह टीम में चयनित नहीं हो सकी। 2011 में इंग्लैंड सीरीज के लिए एकता का भारतीय टीम में चयन हुआ।

बचपन के किस्से :

1992-93 में एकता के बड़े भाई विनीत ने हुक्का क्लब के रामलीला मैदान में सेवन-ए साइड क्रिकेट टूर्नामेंट कराया। बहन की जिद पर विनीत ने बच्चों की टीम बनाई। 1996 में एकता की टीम ने लड़कों की टीम को हरा फाइनल में जगह बनाई। तब एकता ने सर्वाधिक 50 रन जोड़े। 15 वर्ष की उम्र में एकता गोरखपुर सेंट्रल जोन अंडर-19 खेलने गई। तब उन्हें उत्तर प्रदेश की टीम में शामिल करने का ऑफर आया। इसके बाद एकता ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

अल्मोड़ा। "हार और जीत एक सिक्के के दो पहलू हैं। फिर चाहे वो जंग का मैदान हो या खेल का, फर्क नहीं पड़ता।" फौज से रिटायर पिता जब घर पर इन लफ्जों में हौसला अफजाई करते थे तो पहाड़ की "पिच" पर दिन भर धूल-मिट्टी से सनकर वापस आने वाली बिटिया एकता बिष्ट की सारी थकावट छू मंतर हो जाती थी। ऊबड़-खाबड़ मैदानों में रबर की गेंद को घुमाने (स्पिन) का हुनर विकसित करने वाली एकता ने महिला विश्व कप में रविवार को इंग्लैंड के डर्बी में पाकिस्तान के खिलाफ जो प्रदर्शन किया उसके बाद पूरा देश उन्हें सलाम कर रहा है। बुधवार को श्रीलंका के खिलाफ मैच में भी परिजनों के साथ ही देशवासियों को एकता से एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद है। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने एकता को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। अल्मोड़ा के खजांची मोहल्ले में जन्मी एकता का हुक्काक्लब रामलीला मैदान से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम तक पहुंचने का सफर चुनौती भरा रहा है। पिता हवलदार कुंदन सिंह 1988 में कुमाऊं रेजीमेंट (केआरसी) से सेवानिवृत होकर घर लौटे, लेकिन पेंशन इतनी ज्यादा नहीं थी कि परिवार की जरूरतें पूरी हो सकें। एकता का क्रिकेट के प्रति रुझान देखकर वह मान चुके थे कि बेटी का भविष्य इसी खेल में है। पांच साल की उम्र में एकता ने मोहल्ले में लड़कों के साथ खेलना शुरू किया। 2005 में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय जूनियर टीम के अभ्यास सत्र में एकता को मैसूर भेजने के लिए पिता ने अपने चचेरे भाई नर सिंह से पांच हजार रुपए उधार लिए। हालांकि चोटिल होने के कारण एकता तब पाकिस्तान के खिलाफ नहीं खेल पाई। एडम्स इंटर कॉलेज से 12वीं करने के बाद जब एकता कुमाऊं विश्वविद्यालय पहुंचीं तो 2007-08 में विश्वविद्यालय टीम की कप्तान बनीं। 2007 में चैलेंजर कप के लिए भारत "ए" टीम से खेलने मुंबई गई। यहां भी पिता ने बेटी के सामने पैसे की कमी आड़े नहीं आने दी। उन्होंने बीच में खर्च चलाने के लिए चाय की दुकान भी खोली। पिता अपना फर्ज पूरा कर रहे थे। वहीं, कोच लियाकत अली ने ने भी एक अच्छे गुरु की भूमिका निभाई। उन्होंने न सिर्फ एकता को अच्छा गेंदबाज बनाया, बल्कि दस हजार रुपए एकत्र कर उसे 2010 में विश्व कप के लिए बेंगलुरु में लगे कैंप के लिए भेजा। हालांकि तब वह टीम में चयनित नहीं हो सकी। 2011 में इंग्लैंड सीरीज के लिए एकता का भारतीय टीम में चयन हुआ। बचपन के किस्से : 1992-93 में एकता के बड़े भाई विनीत ने हुक्का क्लब के रामलीला मैदान में सेवन-ए साइड क्रिकेट टूर्नामेंट कराया। बहन की जिद पर विनीत ने बच्चों की टीम बनाई। 1996 में एकता की टीम ने लड़कों की टीम को हरा फाइनल में जगह बनाई। तब एकता ने सर्वाधिक 50 रन जोड़े। 15 वर्ष की उम्र में एकता गोरखपुर सेंट्रल जोन अंडर-19 खेलने गई। तब उन्हें उत्तर प्रदेश की टीम में शामिल करने का ऑफर आया। इसके बाद एकता ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

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