घायल होने के बावजूद सचिन ने जब पाकिस्तानी गेंदबाज़ों को दिया था मुंह तोड़ जवाब...

बात 1989 की है, कराची का बेहतरीन मैदान, दर्शकों से खचाखच भरा था. सूरज की रोशनी चारों तरफ खिली थी. भारत-पाकिस्तान के बीच टेस्ट मैच था. दूर से दिखाई पड़ा की एक 16 साल का खिलाड़ी हाथ में भारी बल्ला लेकर क्रीज पर जा रहा था. इमरान खान, वसीम अकरम और वकार यूनुस जैसे पाकिस्तानी खिलाड़ी सोच रहे होंगे कि कौन है यह बच्चा, क्या है क्रिकेट में इसका भविष्य लेकिन इस बच्चे ने न सिर्फ भारत के क्रिकेट को एक नई दिशा दी बल्कि अपना किस्मत को भी चमकाया. यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि सचिन तेंदुलकर था. उस दिन मैच में 15 रन बनाने वाले छोटे भगवान सचिन ने टेस्ट मैचों के अपने करियर में 15921 रन बनाए.

नाक और गले में गेंद लगने के बावजूद भी सचिन ने खेली शानदार पारी : 
उसी श्रृंखला के दौरान सियालकोट में भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी टेस्ट मैच खेला गया. पाकिस्तान की रणनीति थी कि अगर भारत के बल्लेबाज आउट नहीं होते तो उन्हें बाउंसर मारकर टीम इंडिया के बल्लेबाज़ों को घायल किया जाए. भारत अपने दूसरी पारी में 38 रन पर चार विकेट खो चुका था तब वह छोटा भगवान क्रीज पर आया. वसीम अकरम और वकार यूनुस दोनों सचिन को बाउंसर फेंकने लगे. यूनुस की एक गेंद सचिन के नाक पर लगी और अकरम की गेंद सचिन के गले में. वसीम अकरम सोच रहे थे कि शायद इतना घायल होने के बाद सचिन क्रीज छोड़कर चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सचिन ने पट्टी बांधी और अगले ओवर में वकार यूनुस की गेंद पर दो शानदार चौके लगाए. उस मैच में उन्होंने बेहतरीन 57 रन बनाए, मैच ड्रॉ रहा और श्रृंखला भी.

तेज गेंदबाज़ बनने का सपने देखने वाले सचिन ने बड़े गेंदबाज़ों की नींद उड़ाई :
समय के साथ साथ छोटा सचिन बड़ा हुआ और क्रिकेट की किताब में नए कीर्तिमान लिखता गया. सबसे ज्यादा रन बनाने, सबसे ज्यादा शतक मारने से लेकर सबसे ज्यादा मैच खेलने तक इतना रिकॉर्ड की गिनना मुश्किल है. सचिन के पिता ने उनका नाम सचिन इसलिए रखा था क्योंकि वह सचिव देव बर्मन के बड़े प्रशंसक थे. संगीत में वर्मन की तरह क्रिकेट में सचिन ने अपना नाम चमकाया. तेज गेंदबाज़ बनने के सपने देखने वाले सचिन ने लगभग हर बड़े गेंदबाज़ों की नींद उड़ाई. सचिन ने अपनी जिंदगी के पहले 10 मैच भारत के बाहर के मैदान में खेले. पाकिस्तान के बाद न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड दौरे के लिए सचिन का टीम में चयन हुआ. कराची से लेकर क्राइस्टचर्च तक सचिन अपना जलवा दिखा रहे थे. सिर्फ टेस्ट नहीं, एक दिवसीय मैच की शुरुआत भी सचिन ने पाकिस्तान के खिलाफ की थी. अपने पहले दो एक दिवसीय मैचों में सचिन खाता नहीं खोल पाए लेकिन टेस्ट मैच की सफलता ने उन्हें एक दिवसीय मैच में टिके रखने में मदद की.

इंग्लैंड के खिलाफ शानदार प्रदर्शन :
पहले 20 एक दिवसीय मैचों में सचिन का औसत 25 के करीब रहा. लेकिन पहले 20 टेस्ट मैचों में उनका औसत 55 से ज्यादा रहा. जहां भारत के खिलाड़ी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के जैसे बाउंस पिच पर विफल हो रहे थे, वहीं सचिन ने एक नया इतिहास रचा. मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ सचिन ने अपने टेस्ट करियर का पहला शतक लगाया और उस टेस्ट मैच में 'मैन ऑफ द मैच' भी रहे. भारत के मैदान पर सचिन ने अपना पहला मैच 1990 में श्रीलंका के खिलाफ खेला, जिसमें वह सिर्फ 11 रन बना सके. भारत ने वह मैच एक पारी और 8 रन से जीता. उस मैच में वेंकटपति राजू की बेहतरीन गेंदबाज़ी को कोई भुला नहीं सकता. भारत के लोग देश के मैदान पर सचिन के बल्ले का जादू देखना चाहते थे और वह मौका आया. 1992 में इंग्लैंड ने भारत का दौरा किया और इस श्रृंखला में सचिन ने अपने खेल से सबको मंत्र मुग्ध कर दिया. इस श्रृंखला में सचिन का औसत 100 से ज्यादा रहा और भारत ने इंग्लैंड को 3-0 से हराया.

परिवार से ज्यादा क्रिकेट को आगे रखा :
सचिन के करियर शुरू करने से पहले सुनील गावस्कर, क्रिकेट को अलविदा कह चुके थे. लोगों के अंदर एक मायूसी छाई हुई थी, हर तरफ एक ही चर्चा हो रही थी कि कौन लेगा गावस्कर की जगह. गावस्कर पहले खिलाड़ी थे जिन्होंने टेस्ट मैच में 10000 रन बनाए थे. लेकिन सचिन ने गावस्कर की कमी को पूरा किया. सचिन ने अपने परिवार से ज्यादा क्रिकेट को आगे रखा. 1999 विश्वकप की बात है. प्रतियोगिता खेलने के लिए सचिन इंग्लैंड में थे. 17 मई 1999 को सचिन के पिता प्रोफेसर रमेश तेंदुलकर का देहांत हो गया. सचिन को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए मुंबई आना पड़ा. क्रिकेट प्रेमियों की बीच निराशा छा गई. सचिन की गैर मौजूदगी में भारत की टीम अधूरी लगने लगी. लेकिन 4 दिन के बाद सचिन वर्ल्ड कप खेलने के लिए इंग्लैंड लौटे और 23 मई को केन्या के खिलाफ 140 रन की बेहतरीन पारी खेली जिसे उन्होंने अपने पिता को समर्पित किया.

सचिन ने जब अपना करियर शुरू किया तब ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमें काफी अच्छी मानी जाती थी. सचिन का रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सबसे अच्छा रहा. उन्होंने टेस्ट मैचों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सबसे ज्यादा 11 शतक मारे. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सचिन का औसत 55 से ज्यादा है. उन्होंने अपने टेस्ट करियर के छह दोहरे शतक में से दो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हैं. इससे पता चलता है क्यों सचिन शेन वार्ने के सपने में आते थे.

कप्तान के रूप में सचिन रहे विफल लेकिन खुद का प्रदर्शन रहा शानदार :
1999 में सचिन टीम इंडिया के कप्तान बने. कप्तान के रूप में उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली लेकिन उनका अपना प्रदर्शन खराब नहीं रहा. कप्तान रहते हुए अपने 25 टेस्ट मैचों में सचिन ने 51.35 के औसत से 2014 रन बनाए. इसमें 7 शतक शामिल हैं लेकिन दुख की बात यह है कि सचिन की कप्तानी में खेले गए 25 मैचों में से भारत सिर्फ चार मैच जीत पाया और 9 हार गया. इसी वजह से सचिन को कप्तानी छोड़नी पड़ी. उनकी कप्तानी को लेकर मोहम्मद अजहरूद्दीन ने मज़ाक किया था कि छोटे के नसीब में जीत नहीं है. लोग कहते हैं कि सचिन ने जिस मैच में शतक बनाया है उसमें भारत को कम सफलता मिली. लेकिन इस बातों में कोई सच्चाई नहीं है. अपने करियर के 200 में से 72 मैच भारत जीता और जीते हुए मैच में सचिन का औसत 61 रन से ज्यादा रहा जिसमें 20 शानदार शतक शामिल हैं. हारे हुए 56 मैच में सचिन का औसत सिर्फ 37 के करीब रहा. जो मैच ड्रॉ रहे उन मैचों में सचिन का औसत 65 से भी ज्यादा रहा. इसमें यह साफ़ होता है सचिन जब अच्छा खेले तब भारत मैच जीता है या ड्रॉ रखने में कामयाब हुआ.

अपने बल्लेबाजी से आलोचकों को दिया जवाब :
2009-10 में सचिन के करियर पर सवाल उठना शुरू हो गया था. लोग कहते थे कि शायद सचिन के अंदर क्रिकेट खत्म हो रहा है. बार बार चोट की वजह से उनके प्रदर्शन पर काफी असर पड़ रहा था. उनके रिटायरमेंट को लेकर सवाल उठाये जा रहे थे. लेकिन सचिन इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे. 2010 उनके करियर का सबसे बेहतरीन साल रहा. इस साल 15 टेस्ट मैचों में सचिन ने 71.10 के औसत से 1562 रन बनाएं. इस साल दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सचिन ने 200 रन बनाए जो एक दिवसीय मैच में सर्वाधिक स्कोर था. हाल ही में कई खिलाड़ियों ने इस रिकॉर्ड को तोड़ा. 2010 में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल की तरफ से सचिन को 'क्रिकेटर ऑफ द ईयर' का पुरस्कार मिला जो क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है.

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