मध्य प्रदेश में हैं तीन शक्तिपीठ सहित कई देवी मंदिर, जानें इनसे जुड़ी मान्यताएं

मध्य प्रदेश में हैं तीन शक्तिपीठ सहित कई देवी मंदिर, जानें इनसे जुड़ी मान्यताएं


देश के 52 शक्तिपीठों में से तीन मध्य प्रदेश में हैं, उज्जैन की हरसिद्धी माता, मैहर की मां शारदा और अमरकंट में शोण शक्तिपीठ इनमें शामिल हैं। देवास की माता टेकरी पर माता सती का रक्त गिरा था, इसलिए इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। 

नवरात्र के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता का आशीर्वाद पाने पहुंचते हैं। इनके साथ ही दतिया में मां पीतांबरा पीठ दतिया, सलकनपुर में मां विंध्यवासिनी और नलेखड़ा में मां बगलामुखी मुखी के मंदिर में देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। हम आपको यहां मध्य प्रदेश के इन प्रसिद्ध देवी मंदिरों से जुड़ी मान्यताएं बता रहे हैं...

 

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Harsiddhi Mata Ujjain: हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन

देश के 52 शक्तिपीठों में से एक उज्जैन के हरसिद्धि माता मंदिर में नवरात्र के दौरान दीपमालिकाएं प्रज्ज्वलित की जाती हैं। यहां माता सती के हाथ की कोहनी गिरी थी। हरसिद्धि माता उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी हैं। कहा जाता है कि माता दिन में गुजरात और रात में उज्जैन में निवास करती हैं। यह भी कहते हैं कि जरासंध के वध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने इनका पूजन किया था, इसके बाद ही माता का नाम हरसिद्धि रखा गया।

 


Sharda Mata Maihar: शारदा माता मंदिर मैहर

मध्य प्रदेश में विंध्य पर्वत शृंखला के त्रिकूट पर्वत पर मां शारदा देवी का मदिर है। यह देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है, यहां माता सती का हार गिरा था, तभी से इसका नाम माई का हार से मैहर पड़ा। आल्हा मां शारदा के परम भक्त थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था। कहते हैं आज भी आल्हा यहां हर सुबह मां की पूजा करने आते हैं। मां शारदा की प्रतिमा के नीचे एक शिलालेख है, इसकी लिपि को आजतक पढ़ा नहीं जा सका है, यह अपने अंदर अनके रहस्य समेटे हुए है।

 

 


Shondesh Shakti Peeth Amarkantak: शोण शक्तिपीठ अमरकंटक

मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंट में शोण शक्तिपीठ है। यहां माता को नर्मदा के रूप में पूजा जाता है और भगवान भैरव की भद्रसेन के रूप में पूजा होती है। शोधदेश स्थान पर होने की वजह से इसे शोणाक्षी शक्तिपीठ या शोण शक्तिपीठ कहते हैं। यहां देशभर से श्रद्धालु मां नर्मदा और शक्तिपीठ में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

 


Maa Pitambara Peeth Datia: मां पीतांबरा पीठ दतिया

मध्य प्रदेश के दतिया में मां पीतांबरा पीठ स्थित है, मां बगुलामुखी को ही मां पीतांबरा कहा जाता है जो राज सत्ता की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहते हैं माता के दर्शन करने से ही कष्टों और शत्रुओं का विनाश हो जाता है। मंदिर में महाभारत काल का वनखंडेश्वर महादेव का मंदिर हैं, यहां धूमावती माता का मंदिर भी है। 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला कर दिया था तो प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू ने पीतांबरा पीठ मंदिर में 51 कुंडीय यज्ञ करवाया। कहते हैं यज्ञ के दौरान अंतिम आहुति डालने से पहले ही चीन ने अपनी सेना को वापस बुला लिया था। देशभर से राजनेता और उद्योगपति यहां माता के दर्शन को पहुचंते हैं।

 


Vindhyavasini Vijayasana Mata Temple Salkanpur: विंध्यवासिनी विजयासन माता मंदिर सलकनपुर

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में विंध्यवासिनी विजयासन माता मंदिर नवरात्र में श्रद्धालुओं की आस्था केंद्र है। मान्यता है कि राक्षस रक्तबीज का संहार करने के बाद माता जिस स्थान पर विराजमान हुईं थी उसे विजयासन कहा जाता है। मंदिर में माता की मूर्ति दक्षिणमुखी है, यहां आस-पास पहाड़ी पर रक्त बीज से युद्ध के अवशेष भी मिलते हैं। मंदिर में संत भद्रानंद स्वामी ने यहां कठोर तपस्या की थी। देश के अनेक स्थानों ने श्रद्धालु यहां अपनी मन्नत पूरी होने पर पहुंचते हैं और माता को चढ़ावा चढ़ाते हैं।

 

 

Maa Baglamukhi Mandir Nalkheda: मां बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा

आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे त्रिशक्ति माता बगलामुखी के मंदिर में देशभर से शाक्य और शैव मार्गी साधु-संत सहित श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू हैं, मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के निर्देश पर पांडवों ने कौरवों पर विजय पाने के लिए यहां मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में एक 36 फीट ऊंची दीपमालिका भी है। मान्यता है कि यहां हवन करवाने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां हवन-पूजन करवाने के लिए पहुंचते हैं।

 

Dewas Mata Tekri: मां चामुंड़ा और मां तुलजा भवानी देवास
देवास में माता टेकरी पर बड़ी माता के रूप में मां तुलजा भवानी और छोटी माता के रूप में मां चामुंडा विराजमान हैं। मान्यता है कि देवास टेकरी पर माता सती का रक्त गिरा था, इसलिए इसे शक्तिपीठ माना जाता है। नवरात्र के दौरान भक्त अपनी मनोकामनाओं को लेकर दूर-दूर से नंगे पैर यहां माता का आशीर्वाद पाने पहुंचते हैं। ये मंदिर 450 वर्ष से भी ज्यादा पुराने बताए जाते हैं। टेकरी पर नाथ संप्रदाय का सिद्ध स्थल है। तुलजा भवानी शिवाजी महाराज की कुलदेवी हैं।

 

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