हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने से मिलती है ये ऊर्जा

अपने भक्तों के हर दु:ख हरने वाले पवनपुत्र मारुतिनंदन को चोला चढ़ाने से जहां सकारात्मक ऊर्जा मिलती है वहीं बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को ही भगवान राम की सेवा करने के उद्देश्य से भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र ने वानरराज केसरी और अंजना के घर हनुमान के रूप में जन्म लिया था।

देवताओं के राजा इंद्र ने भक्त हनुमान पर वज्र से प्रहार किया था इससे उनकी ठुड्डी टूट गई थी। इस कारण उन्हें हनुमान कहा जाता है।

बल, बुद्धि और विद्या को देने वाले संकटमोचन केशरीनंदन की पूजा अर्चना और उपासना से जहाँ सब तरह के अनिष्टों से छुटकारा मिलता है वहीं मनुष्य को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। उत्तरकांड में तो भगवान राम ने हनुमान को प्रज्ञा, धीर, वीर, राजनीति में निपुण आदि विशेषणों से संबोधित किया है।

उज्जैन के ज्योतिषी आनंद शंकर व्यास कहते हैं कि हनुमान का शुमार अष्टचिरजीवी में किया जाता है, यानि वे अजर-अमर देवता हैं। उन्होंने मृत्यु को प्राप्त नहीं किया। ऐसे में अमृतयोग में उनकी जयंती मनाना ज्यादा फलदायक होगी।

उनके अनुसार बजरंगबली की उपासना से जहां भक्ति की भावना प्रबल होती है वहीं शक्ति मिलती है। ऐसा भक्त कभी पराजित नहीं होता, हमेशा उसकी विजय होती है। दीर्घ जीवन की कामना के साथ भी हनुमानजी की आराधना की जाती है। हनुमानजी का जन्म सूर्योदय के समय बताया गया है इसलिए इसी काल में उनकी पूजाअर्चना और आरती का विधान है।

आचार्य श्यामनारायण व्यास के अनुसार हनुमानजी की उपासना से बल, बुद्धि और ज्ञान तो मिलता ही है। उन्हें सिंदूर और तेल का चोला चढ़ाने से मूर्ति का स्पर्श होता है, इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। निश्चित रूप से इसका असर मनुष्य की तेजस्विता पर पड़ता है और शरीर को लाभ मिलता है। जिन लोगों को शनिदेव की पीड़ा हो उन्हें बजरंग बली को तेल-सिंदूर का चोला अवश्य चढ़ाना चाहिए।

बहुत कम लोगों को पता होगा कि हनुमान मंदिरों पर और प्रतिमाओं पर लाल रंग की ध्वजा क्यों लहराती है। दरअसल लाल रंग भी मंगल का प्रतीक है इसके साथ ही यह चेतावनी भी देता है कि यदि आप संयम और सतर्कता से अपनी जीवनचर्या नहीं चलाएंगे तो खतरे में पड़ सकते हैं।

आचार्य धर्मेंद्र शास्त्री का कहना है कि हनुमान जी का चरित्र सेवा और समर्पण का अद्भुत प्रतीक है। वे अपने प्रभु राम पर सर्वस्व अर्पण करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। कहीं गया है कि प्रभु राम की सेवा की तुलना में मारुतिनंदन को शिवत्व अथवा ब्रह्मत्व की इच्छा भी कौडी बराबर लगती थी।

उन्हें इसीलिए शक्ति और भक्ति का संगम कहा गया है। वे अपने भक्तों की सच्चे मन से की गई हर तरह की मनोकामना पूरी करते हैं और अनिष्ट करने वाले शक्तियों को परे रखते हैं। इसीलिए जादूटोना जैसे कष्टों को दूर करने के लिए लोग दक्षिणमुखी बजरंग बली की शरण में जाते हैं।

प्राय: शनिवार व मंगलवार हनुमान के दिन माने जाते हैं। अध्यात्मिक उन्‍नति के लिए वाममुखी (जिसका मुख बाईं ओर हो) हनुमान या दास हनुमान की मूर्ति को पूजा में रखने का रिवाज है। दास हनुमान और वीर हनुमान बजरंग बली के दो रूप बताए गए हैं ।

दास हनुमान राम के आगे हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं और उनकी पूंछ जमीन पर रहती है जबकि वीर हनुमान योद्धा मुद्रा में होते हैं और उनकी पूंछ उठी रहती है तथा दाहिना हाथ सिर की ओर मुड़ा हुआ रहता है। कहीं-कहीं उनके पैरों तले राक्षस की मूर्ति भी होती है।

एक कथा बहुत प्रचलित है। इसमें बताया गया है कि एक बार बचपन में हनुमान जी ने अपनी मां को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखकर इसकी वजह पूछी तो उनकी मां ने कहा कि वो अपने प्रभु यानी अपने पति को खुश करने और उनकी लंबी आयु के लिए अपनी मांग में सिंदूर लगाती है।

इस पर हनुमान जी ने सोचा कि जब चुटकी भर सिंदूर से ही मां के प्रभु प्रसन्न हो सकते हैं तो मैं अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लेता हूं जिससे प्रभु की कृपा मुझ पर हमेशा बनी रहेगी।

 

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