देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक पीएनबी (पंजाब नेशनल बैंक) ने पिछले बुधवार को स्टॉक एक्सचेंज को 11,345 करोड़ रुपए के घोटाले की सूचना दी. यह जानकारी सार्वजनिक होने के बाद पीएनबी के शेयर 11 फीसदी तक गिर गए. पीएनबी के अलावा कुछ अन्य बैंकों के शेयरों में भी गिरावट आई है. इनमें सरकारी और निजी दोनों तरह के बैंक शामिल हैं. सरकारी बैंकों की बात करें तो यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इलाहाबाद बैंकों के शेयर टूटे. निजी बैंकों में एक्सिस बैंकों के शेयरों पर इसका असर दिखा है.
वास्तव में इस खबर ने पूरे शेयर बाजार में सनसनी फैला दी है. आशंका जताई जा रही है कि घोटाले की चपेट आने वाले दिनों में और भी बैंक आ सकते हैं. फिलहाल इस मामले की जांच सेबी के अलावा सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां कर रही हैं.
कैसे शुरू हुआ यह खेल?
आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि इस मामले की शुरुआत कैसे हुई? हुआ ये कि पीएनबी के मुंबई स्थित ब्रांच में 2010-11 में कुछ लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoE) जारी किए गए थे. वो एलओई देश के उन नामचीन ज्वैलर्स को जारी किए गए थे, जिनकी शाखाएं विदेश में भी थीं. इनमें गीतांजलि, गिन्नी, नक्षत्र और निरव मोदी शामिल हैं.
क्या है एलओई?
पहले आपको बता दें कि एलओयू क्या बला है? एलओयू किसी बैंक की तरफ से जारी किया गया एक ऐसा लेटर है, जिसके जरिए दूसरी बैंकों की विभिन्न शाखाएं लाभान्वित कंपनियों को कर्ज दे सकती हैं. बस यहीं से शुरू हुआ घोटाले का पूरा किस्सा.
विदेश में स्थित उन बैंकों की शाखाओं ने इन्हीं एलओयू के आधार पर उन चंद ज्वैलर्स को अंधाधुंध लोन जारी कर दिया. ये लोन बांटने का आधार महज एलओयू था. माना जा रहा है कि कर्ज देने वाली विदेशी शाखाओं ने इतना भी जांचना जरूरी नहीं समझा कि वो एलओयू असली थे या नकली. इसका मतलब साफ है कि ये कर्ज उन विदेशी शाखाओं के कर्मचारियों ने ज्वैलर्स के साथ मिलीभगत में जारी किया हो. एजेंसियां इस बिंदु पर भी जांच कर रही हैं.
कब हुआ खुलासा?
मामले का खुलासा तब हुआ जब पीएनबी ने स्टॉक एक्सचेंज में हाल ही में इस घोटाले की जानकारी दी. इसके बाद क्या हुआ अब यह किसी से छिपा नहीं है. हालांकि बताया जा रहा है कि इस घोटाले में पीएनबी के सिर्फ 1700 करोड़ रुपए फंसे हैं. फिर भी पीएनबी के लिए यह मामला ज्यादा गंभीर इसलिए है क्योंकि अन्य बैंकों ने इसी बैंक के एलओयू के आधार पर लोन बांटा था.
कार्रवाई के तौर पर पीएनबी ने 10 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. साथ ही उन्हें पूछताछ के लिए सीबीआई को सौंप दिया है. दूसरे बैंक भी इसी तरह की कार्रवाई करने पर विचार कर रहे हैं. अफसोस की बात है कि यह घोटाला तब उजागर हुआ है जब सरकार पहले ही एनपीए में दबे बैंकों को बेलआउट करने के लिए मोटी रकम दे चुकी है. ऐसे में इस घोटाले की खबर से बैंकिंग इंडस्ट्री को जबरदस्त झटका लगा है.
कैसे रहे पीएनबी के नतीजे?
दिलचस्प है कि दिसंबर 2018 तिमाही में दूसरे बैंकों को घाटा हुआ था वहीं पीएनबी उन गिने-चुने बैंकों में शामिल था, जिन्होंने मुनाफा बनाया था. दिसंबर 2018 तिमाही में पीएनबी को 230 करोड़ रुपए का प्रॉफिट हुआ था. लेकिन इस मामले के उजागर होने के बाद माना जा रहा है कि पीएनबी के फिस्कल ईयर 2018 के नतीजे कमजोर रह सकते हैं.
सरकार ने साफ कर दिया है कि इस पूरे मामले को अलग रूप में देखा जाना चाहिए. जैसा कि फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्रेटरी राजीव कुमार ने कहा है कि इस मामले को अलग तरह से देखा जाना चाहिए और इसका असर दूसरे बैंकों पर पड़ने की आशंका नहीं है. इस बात के पूरे आसार हैं कि कई दूसरे बैंकों के नाम भी इसमें जुड़ सकते हैं. लिहाजा सरकार ने उन सभी बैंकों को स्टेटस रिपोर्ट जमा कराने को कहा है.
बेईमानी का बीमा
इस पूरे मामले को इंश्योरेंस के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए. प्रत्येक बैंक नॉन-लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों से हर साल कई तरह का बीमा करवाती हैं. इनमें कर्मचारियों की बेईमानी के खिलाफ ली गई बीमा भी शामिल है.
पंजाब नेशनल बैंक की बात करें तो इसने चेन्नई की यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस से इस तरह का बीमा लिया था. यह इंश्योरेंस इस साल और बीते सालों के लिए लिया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बीमा के तहत सर्वाधिक कवरेज सिर्फ 2 करोड़ रुपए है. उसमें भी यूनाइटेड इंडिया की भागीदारी 40 फीसदी है. बाकी की 60 फीसदी हिस्सेदारी तीन अन्य सरकारी बीमा कंपनियों की है. इनमें न्यू इंडिया अश्योरेंस, अोरिएंटल इंश्योरेंस और नेशनल इंश्योरेंस शामिल हैं. ये 60 फीसदी हिस्सेदारी इन तीनों कंपनियों में बराबर बंटी हुई है.
इस बीमा का रेट्रोएक्टिव पॉलिसी दो साल के लिए है. इसका मतलब यह हुआ कि घोटाले का खुलासा होने के दो साल पहले तक की अवधि के दौरान हुई जालसाजी के लिए भी ये बीमा कंपनियां बैंक के क्लेम को सर्विस देगी.
जो भी हो, मामले की अभी जांच बाकी है. उसके बाद ही तय होगा कि इंश्योरेंस कंपनियों को इसका कितना नुकसान उठाना होगा. देखना है सरकार और रेगुलेटर एजेंसियां किस तरह से लगाम कसने का काम करती है ताकि इस तरह की वित्तीय जालसाजी के मामलों पर शिकंजा जा सके.
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