विद्युत एक महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है। वर्ष 2003-04 में जब हमारी सरकार सत्ता में आई, उस समय प्रदेश में बिजली की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। आये दिन विद्युत कटौती होती थी एवं उद्योगों और कृषकों को भी नियमित विद्युत प्रदाय नहीं हो पा रहा था। उस समय हमारी सरकार ने प्रदेश के विद्युत क्षेत्र में सुधार को एक चुनौती के रूप में लिया और न केवल प्रदेश को बिजली के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाया, अपितु विद्युत आधिक्य वाले राज्य के रूप में भी स्थापित किया।
वर्ष 2003-04 में प्रदेश की विद्युत उपलब्ध क्षमता मात्र 5173 मेगावॉट थी, जो आज 21 हजार 615 मेगावॉट हो गई है, जिसमें नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों का योगदान 4080 मेगावाट है। मैं यह बताना चाहूँगा कि वर्ष 2003-04 में नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों से राज्य की संबद्ध क्षमता शून्य थी। इसी दौरान म.प्र. पावर जनरेटिंग कंपनी की उत्पादन क्षमता को भी 2148 मेगावाट से बढा़ कर 5400 मेगावाट किया गया। यह भी अवगत कराना चाहूँगा कि वर्ष 2003-04 में राज्य में कुल विद्युत प्रदाय मात्र 2860 करोड़ यूनिट था, जो अब तीन गुने से अधिक बढ़ कर 8670 करोड़ यूनिट हो गया है।
हमारी सरकार द्वारा विद्युत अधो-संरचना के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं। अति उच्च दाब लाइनों की लम्बाई, जो वर्ष 2004 में मात्र 18 हजार 48 सर्किट कि.मी. थी, अब बढ़ कर 41 हजार 325 सर्किट कि.मी. एवं अति उच्च दाब उप केन्द्रों की संख्या जो वर्ष 2004 में 162 थी, अब बढ़कर 406 हो गई है। इसी प्रकार 33 के.व्ही. लाइनों की लम्बाई वर्ष 2004 में 29 हजार 556 कि.मी. से बढ़ कर वर्तमान में 57 हजार 905 कि.मी. तथा 11 के.व्ही. लाइनों की लम्बाई 1 लाख 60 हजार 865 कि.मी. से बढ़ कर वर्तमान में 4 लाख 63 हजार 449 कि.मी. पर पहुँच गई है। वितरण ट्रांसफार्मरों की संख्या, जो वर्ष 2004 में मात्र 1 लाख 68 हजार 346 थी, अब बढ़ कर 9 लाख 53 हजार 295 हो गई है।
प्रदेश के इतिहास में 24 दिसंबर, 2021 को अभी तक की सर्वाधिक 15 हजार 692 मेगावाट शीर्ष माँग की पूर्ति की गई। प्रदेश की वर्तमान ट्रांसमिशन क्षमता में बढ़ती हुई माँग के अनुरूप वृद्धि की जा रही है। प्रदेश में पारेषण हानियाँ अब मात्र 2.63 प्रतिशत रह गई है, जो पूरे देश में न्यूनतम हानियों में से एक है। वर्ष 2003-04 में राज्य में वितरण कंपनियों की एटी एंड सी हानियाँ 49.60 प्रतिशत थी, ये सरकार के विशेष प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्ष 2021-22 में यह हानियाँ कम होकर 20.32 प्रतिशत रह गई है।
हमारी सरकार का यह प्रयास रहा है कि प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति को विद्युत उपलब्ध हो, परिणामस्वरूप वर्ष 2003-04 में विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या 64 लाख 4 हजार थी, जो अब बढ कर 171 लाख हो गई है। उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने के साथ हमारा यह प्रयास रहा है कि हर उपभोक्ता को आवश्यकता के अनुरूप विद्युत उपलब्ध हो। इसके फलस्वरूप प्रदेश में विद्युत की प्रति व्यक्ति खपत, जो वर्ष 2003-04 में 451 यूनिट थी, वर्ष 2021-22 में बढ़ कर 1032 यूनिट हो गई है।
हमारी सरकार द्वारा विद्युत क्षेत्र में किए गए विशेष प्रयासों के फलस्वरूप ही आज हम कृषि उपभोक्ताओं को नियमित रूप से 10 घंटे एवं गैर कृषि उपभोक्ताओं को 24 घंटे गुणवत्तापूर्ण विद्युत प्रदाय करने में सफल हुए हैं। इस व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए सभी विद्युत कंपनियों की वित्तीय साध्यता सुनिश्चित करने के साथ ही सेवाओं में उत्तरोत्तर बेहतरी लाते हुए उपभोक्ता संतुष्टि में वृद्धि करने के प्रयास किए जा रहे हैंI
आम उपभोक्ता को विद्युत देयकों में राहत देने के लिए हमारी सरकार द्वारा सब्सिडी दी जा रही है। इसमें 150 यूनिट तक की मासिक खपत वाले सभी घरेलू उपभोक्ताओं को उनकी प्रथम 100 यूनिट तक की मासिक खपत पर मात्र 100 रूपये के देयक दिए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले घरेलू उपभोक्ताओं को 30 यूनिट तक की मासिक खपत पर मात्र 25 रूपये ही देय है। कृषि कार्य के लिए फ्लेट दरों पर विद्युत प्रदाय किया जा रहा है। एक हेक्टेयर तक की भूमि वाले एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के कृषकों को निःशुल्क विद्युत प्रदाय किया जा रहा है।
आगामी लक्ष्य
विद्युत मंत्रालय की रीवैम्पड वितरण क्षेत्र सुधार योजना (RDSS) में प्रथम चरण में दिसंबर 2023 तक 38 लाख स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य है। इसी योजना में नए सब-स्टेशनों की स्थापना, केपेसिटर बैंक, फीडर विभक्तिकरण कार्यों और उनकी गुणवत्ता की सतत् निगरानी तथा वेंडरों के भुगतान के लिए विभिन्न पोर्टल विकसित किये जा रहे हैं। साथ ही ट्रांसफार्मर, मीटर, केबल आदि के लिए इन-हाउस परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा रही है।
जबलपुर, भोपाल, इन्दौर में एन.ए.बी.एल मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला स्थापित हो चुकी हैं। ग्वालियर, उज्जैन, छिन्दवाड़ा में प्रयोगशालाओं का कार्य लगभग पूरा हो गया है। सतना, सागर एवं बडवाह में मार्च 2023 तक प्रयोगशाला की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस तरह से ऊर्जा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को आत्म-निर्भर बनाने तथा उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बिजली उपलब्ध कराने की दिशा में सरकार सतत् प्रयत्नशील है।
देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश ने पिछले डेढ़ दशक में विकास के नये आयाम स्थापित कर विकसित राज्य की पहचान बना ली है। मध्यप्रदेश की सुशासन और विकास रिपोर्ट-2022 के अनुसार राज्य में आए बदलाव से मध्यप्रदेश बीमारू से विकसित प्रदेशों की पंक्ति में उदाहरण बन कर खड़ा हुआ है। इस महती उपलब्धि में प्रदेश में जन-भागीदारी से विकास के मॉडल ने अहम भूमिका निभाई है।
इन दिनों पूरे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की जानकारी देने और बहनों के फार्म भरवाये जाने के लिये विभिन्न गतिविधियाँ जारी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं जिला स्तरीय महासम्मेलनों में बहनों को योजना के प्रावधानों से अवगत करा रहे हैं। मुख्यमंत्री पहले सम्मेलन में आई बहनों का फूलों की वर्षा कर स्वागत-अभिनंदन करते है और संवाद की शुरूआत फिल्मी तराने "फूलों का तारों का सबका कहना है-एक हजारों में मेरी बहना है" के साथ करते है। मुख्यमंत्री का यह जुदा अंदाज प्रदेश की बहनों को खूब भा रहा है।
राज्य सरकार की 03 साल की प्रमुख उपलब्धियां - एक नजर में
भोपाल। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत मुद्दों से जूझते विश्व की पर्यावरणीय सुरक्षा के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा फ्रांस में नवम्बर 2015 में लिये गए संकल्प में मध्यप्रदेश बेहतरीन योगदान दे रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश ने पिछले 11 वर्षों में सोलर ऊर्जा में 54 और पवन ऊर्जा में 23 प्रतिशत की वृद्धि की है। वर्तमान में साढ़े पाँच हजार मेगावाट ग्रीन ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। इससे एक करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है जो 17 करोड़ पेड़ के बराबर है।
भोपाल। देश के विकास में भारतवंशियों के योगदान पर गौरवान्वित होने के लिए हर साल 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।इस बार 9 जनवरी 2023 को प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन मध्यप्रदेश की धरती इंदौर में होने जा रहा है, जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव और सौभाग्य की बात है। देश का सबसे साफ शहर इंदौर सभी प्रवासी भारतीयों का स्वागत करने के लिए आतुर है।
मध्यप्रदेश सरकार की स्टार्ट-अप फ्रेंडली नीतियों के परिणामस्वरूप प्रदेश स्टार्टअप्स का हब बन रहा है। मध्यप्रदेश, देश के उन अग्रणी राज्यों में शामिल है, जो स्टार्ट-अप्स के लिए विश्व स्तरीय ईकोसिस्टम प्रदान करते हैं। स्टार्ट-अप ब्लिंक की रिपोर्ट के अनुसार देश में इंदौर 14वें स्थान पर और भोपाल 29वें स्थान पर है। मध्यप्रदेश के 2500 से अधिक स्टार्ट-अप भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग में पंजीकृत हैं।
भोपाल। पशुपालन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश अनेक राष्ट्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में देश में प्रथम स्थान पर है। अन्य राज्यों के लिए मध्यप्रदेश मॉडल राज्य के रूप में उभरा है।
राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में प्रदेश में 2 करोड़ 92 लाख 51 हजार गौ-भैंस वंशीय पशु पंजीकृत हैं। इन पशुओं को यूआईडी टैग लगा कर इनॉफ पोर्टल पर दर्ज किया गया है, जो देश में सर्वाधिक है।
मध्यप्रदेश को यह गौरव हासिल है कि यह देश की सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या का घर है। प्रदेश का इन्द्रधनुषीय जनजातीय परिदृश्य अपनी विशिष्टताओं की वजह से मानव-शास्त्रियों, सांस्कृतिक अध्येताओं, नेतृत्व शास्त्रियों और शोधार्थियों के विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहाँ की जनजातियाँ सदैव से अपनी बहुवर्णी संस्कृति, भाषाओं, रीति-रिवाज और देशज तथा जातीय परम्पराओं के साथ प्रदेश के गौरव का अविभाज्य अंग रही है।
मध्यप्रदेश के इन्द्रधनुषी जनजातीय संसार में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ आदिम मुस्कान बिखेरता हुआ पहाड़ी झरने की तरह गतिमान है। मध्यप्रदेश सघन वनों से आच्छादित एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा और अन्य पर्वत-श्रेणियों के उन्नत मस्तकों का गौरव-गान करती हवाएँ और उनकी उपत्यकाओं में अपने कल-कल निनाद से आनंदित करती नर्मदा, ताप्ती, तवा, पुनासा, बेतवा, चंबल, दूधी आदि नदियों की वेगवाही रजत-धवल धाराएँ मानो,वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियाँ।
धरती पुत्र शिवराज सिंह चौहान ने जबसे प्रदेश की कमान सम्हाली है, तभी से स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने को साकार करने में हर पल गुजरा है। मुख्यमंत्री श्री चौहान कहते हैं कि प्रदेश के सर्वांगीण विकास में किसान की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसी सोच के मद्देनजर किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये निरंतर कार्य किये हैं, जो आज भी बदस्तूर जारी हैं। अपनी स्थापना के 67वें वर्ष में मध्यप्रदेश कृषि के क्षेत्र में अग्रणी प्रदेश है, जिसने कई कीर्तिमान रचते हुए लगातार 7 बार कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त किया है।