मध्यप्रदेश की धरती का श्रंगार करने वाले वन उनके आस-पास रहने वाले गाँव वालों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास का भी बहुत बड़ा साधन हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये प्रदेश के वनावरण को संरक्षित रखते हुए वन विभाग इन्हें रोजगार सम्पन्न बनाने के लिये विभिन्न योजनाएँ संचालित कर रहा है। वन संरक्षण, पुन: उत्पादन, पुन: स्थापना और पौधरोपण आदि कार्यों पर पिछले 11 वर्ष में 2672 करोड़ से ज्यादा राशि व्यय की गयी। अकेले पिछले वित्त वर्ष में 2 करोड़ 90 लाख मानव दिवस का रोजगार वनों के जरिये उपलब्ध करवाया गया। रोजगार के अलावा वन से फल, फूल, जड़, औषधि, लकड़ी, रेशम, ईंधन, उर्वरक आदि अनेक उत्पाद प्राप्त होते हैं। वनों के संधारण से अप्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन मिलती है। जल एवं मिट्टी संरक्षण होता है, जिसका खेती, जनता और पशुओं को सीधा लाभ मिलता है।
बाँस और काष्ठ का लाभांश वितरण
प्रदेश में बाँस कटाई में लगे श्रमिकों को बाँस विदोहन से प्राप्त शुद्ध लाभ शत-प्रतिशत बाँटा जाता है। सितम्बर, 2016 से काष्ठ लाभांश भी 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है। पिछले ग्यारह साल में काष्ठ का करीब 212 करोड़ और बाँस का 66 करोड़ से ज्यादा का लाभांश दिया गया।
निजी भूमि पर वृक्ष लगाने को प्रोत्साहन देने के लिये वर्ष 2013-14 से प्रारंभ योजना में खेत की मेढ़ अथवा कृषि फसल के बीच में कम से कम सौ पौधे लगाने पर पहले एवं दूसरे वर्ष में तीन रुपये प्रति पौधा और तीसरे वर्ष में चार रुपये प्रति पौधा दिया जाता है। योजना में वनदूत के जरिये पौध-रोपण होने पर उसे पहले वर्ष दो रुपये और तीसरे वर्ष एक रुपये प्रति पौधा दिया जाता है। योजना में अब तक 3,338 भूमि-स्वामियों को अनुदान और 290 वनदूत को करीब 23 लाख रुपये का अनुदान मंजूर किया जा चुका है। प्रदेश की नई कृषि वानिकी नीति बनायी जा रही है, जिसमें प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर 25 रुपये और वनदूतों की राशि बढ़ाकर 7 रुपये की जाना प्रस्तावित है।
दीनदयाल वनांचल सेवा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 20 अक्टूबर, 2016 से शुरू इस योजना में वनों की सुरक्षा के साथ-साथ वनवासी कल्याण एवं सेवा की अभिनव पहल की गयी है। इसमें सुदूर वनांचलों में पदस्थ वन कर्मचारी, विशेषकर महिला वन-रक्षक द्वारा आँगनवाड़ी, स्वास्थ्य केन्द्र, स्कूल आदि में चल रही लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला-बाल विकास, स्कूल शिक्षा एवं आदिम-जाति कल्याण विभाग के कार्यक्रमों में सहयोग कर वनवासियों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा स्तर में सुधार लाया जायेगा। योजना के जरिये वन-रक्षक मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने, प्रजनन दर में सुधार, नवजात शिशुओं एवं बच्चों का टीकाकरण, मलेरिया उन्मूलन, महामारियों की सूचना स्वास्थ्य केन्द्र को उपलब्ध करवाना, ओआरएस, क्लोरीन टेबलेट्स, ब्लीचिंग पावडर के भण्डारण एवं उपयोग, कुपोषण दूर करने, स्कूलों में आवश्यकता पड़ने पर अध्यापन कार्य और शाला-त्यागी बच्चों में कमी लाने आदि में सहयोग कर रहे हैं।
वन्य-प्राणियों द्वारा जन-पशु-हानि पर मुआवजा
राज्य शासन ने वन्य-प्राणियों द्वारा जन-हानि होने पर डेढ़ लाख रुपये के मुआवजे को बढ़ाकर चार लाख कर दिया है। इसी तरह स्थायी रूप से अपंगता की स्थिति में एक लाख रुपये को बढ़ाकर दो लाख रुपये, अपंगता/जन-घायल होने की स्थिति में इलाज पर हुए वास्तविक व्यय के अतिरिक्त अस्पताल में भर्ती होने की अवधि में अतिरिक्त रूप से 500 रुपये प्रतिदिन देने का भी प्रावधान है। ग्यारह वर्ष पहले वन्य-प्राणियों द्वारा फसल हानि किये जाने पर कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती थी। वर्ष 2008-09 से इसका भी प्रावधान किया गया है। इसके बाद से वर्ष 2016 के मध्य तक 366 हितग्राही को जन-हानि के लिये 4 करोड़ 46 लाख, जन-घायल 15 हजार 251 हितग्राही को 5 करोड़ 46 लाख, पशु-हानि के 29 हजार 717 हितग्राही को 16 करोड़ 62 लाख और फसल हानि के 3707 हितग्राही को 2 करोड़ 49 लाख रुपये की राशि मुआवजे के रूप में वितरित की गयी।
विस्थापित ग्रामीणों को 1022 करोड़ का मुआवजा
संरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये वर्ष 2009 से वर्ष 2016 की अवधि में 4105 ग्रामीण को 1022 करोड़ से ज्यादा की राशि उपलब्ध करवायी गयी।
तेन्दूपत्ता संग्राहकों को लगभग 837 करोड़ का बोनस
प्रदेश में राष्ट्रीयकृत लघु वनोपज के व्यापार से होने वाली शुद्ध आय पूरी तरह से तेन्दूपत्ता संग्राहकों पर ही व्यय की जाती है। शुद्ध आय का 70 प्रतिशत भाग तेन्दूपत्ता संग्राहकों को प्रोत्साहन पारिश्रमिक के रूप में, 15 प्रतिशत वन विभाग की देखरेख में वन विकास एवं प्रशिक्षण आदि पर और शेष 15 प्रतिशत संग्राहकों के गाँव की मूलभूत सुविधाओं एवं कल्याणकारी योजनाओं पर अमल में व्यय किया जाता है। वर्ष 2004 से संग्राहकों की अधिक आय के लिये तेन्दूपत्ता की अग्रिम निवर्तन पद्धति शुरू की गयी।
संग्रहण दर में निरंतर वृद्धि
प्रदेश में वर्ष 2004 में तेन्दूपत्ता संग्रहण दर 400 रुपये प्रति मानक बोरा थी, जो वर्ष 2010 में 650 रुपये, वर्ष 2012 में बढ़ाकर 750 रुपये और वर्ष 2016 में बढ़ाकर 950 रुपये की गयी। इस वर्ष संग्राहकों को 1250 रुपये प्रति मानक बोरा की दर से 232 करोड़ रुपये के पारिश्रमिक का भुगतान किया गया है।
संग्राहकों के लिये बीमा योजना
सामाजिक सुरक्षा समूह बीमा योजना में तेन्दूपत्ता संग्राहकों की सामान्य मृत्यु होने की स्थिति में परिजनों को 5000 रुपये, दुर्घटना मृत्यु में 26 हजार 500, दुर्घटना में आंशिक विकलांगता पर 12 हजार 500 और पूर्ण विकलांग होने पर 25 हजार रुपये की राशि दी जाती है। राज्य वनोपज संघ 18 से 60 वर्ष की आयु वाले सभी तेन्दूपत्ता संग्राहकों का बीमा करवाता है। पिछले 10 साल में 73 हजार 981 संग्राहक को 36 करोड़ 32 लाख की राशि वितरित की गयी है।
एकलव्य शिक्षा विकास योजना
तेन्दूपत्ता संग्राहकों के बच्चों की शिक्षा के लिये नवम्बर, 2010 से प्रारंभ इस योजना में अब तक 4129 विद्यार्थी को 250 लाख रुपये वितरित किये जा चुके हैं। तेन्दूपत्ता संग्राहकों, फड़ मुंशी एवं वनोपज समिति के प्रबंधकों के बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिये उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों में प्रवेश एवं शिक्षा का व्यय वनोपज संघ द्वारा वहन किया जाता है।
ईको-पर्यटन से सतत आजीविका
ईको-पर्यटन बोर्ड पर्यटन-स्थलों के निकट रहने वाले ग्रामीण युवकों को गाइड, बोट-मेन, केम्प प्रबंधन, साहसिक क्रीड़ा आदि का उत्कृष्ट संस्थानों में प्रशिक्षण देकर उन्हें उन्हीं के क्षेत्र में सतत रोजगार दिला रहा है। बोर्ड अब तक 360 ग्रामीण युवकों को गाइड का, 45 को नाविक, 102 को केम्प प्रबंधन और 74 को वन विश्राम-गृह के चौकीदार का प्रशिक्षण देकर रोजगार दिलवा चुका है।
लोक-वानिकी
निजी वानिकी को प्रोत्साहन देते हुए उसे लाभदायक व्यवसाय बनाने के लिये लागू की गयी लोक-वानिकी योजना से अब तक 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्र की 2846 और 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों की 31 प्रबंध योजनाएँ स्वीकृत हुई हैं।
निस्तार के लिये रियायती दर पर लकड़ी
ग्रामीणों को घरेलू उपयोग के लिये बाँस, छोटी इमारती लकड़ी, बल्ली, हल-बक्खर बनाने की और जलाऊ लकड़ी रियायती दर पर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में 1814 निस्तार डिपो स्थापित हैं। इसके अलावा सिरबोझ द्वारा गिरी-पड़ी मरी-सूखी जलाऊ लकड़ी लाने की भी सुविधा दी जा रही है।
प्रदेश में 24 हजार 58 बँसोड़ परिवार पंजीकृत हैं, जिन्हें रॉयल्टी मुक्त दर पर बाँस उपलब्ध करवाया जाता है। बाँस का सामान बनाकर जीवन चलाने वाले बैगा आदिवासियों को भी निस्तार दरों पर बाँस उपलब्ध करवाया जाता है। हर वर्ष प्रदेश में लगभग 60 लाख बाँस 24 हजार बँसोड़ परिवार को, एक लाख 90 हजार बल्ली 19 हजार परिवार को और 90 हजार जलाऊ चट्टे 45 हजार हितग्राही परिवार को निस्तार के लिये दिये जाते हैं। ग्रामीणों को हर साल निस्तार नीति में 15 करोड़ रुपये की रियायत दी जाती है।
देश के हृदय स्थल मध्यप्रदेश ने पिछले डेढ़ दशक में विकास के नये आयाम स्थापित कर विकसित राज्य की पहचान बना ली है। मध्यप्रदेश की सुशासन और विकास रिपोर्ट-2022 के अनुसार राज्य में आए बदलाव से मध्यप्रदेश बीमारू से विकसित प्रदेशों की पंक्ति में उदाहरण बन कर खड़ा हुआ है। इस महती उपलब्धि में प्रदेश में जन-भागीदारी से विकास के मॉडल ने अहम भूमिका निभाई है।
इन दिनों पूरे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की जानकारी देने और बहनों के फार्म भरवाये जाने के लिये विभिन्न गतिविधियाँ जारी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं जिला स्तरीय महासम्मेलनों में बहनों को योजना के प्रावधानों से अवगत करा रहे हैं। मुख्यमंत्री पहले सम्मेलन में आई बहनों का फूलों की वर्षा कर स्वागत-अभिनंदन करते है और संवाद की शुरूआत फिल्मी तराने "फूलों का तारों का सबका कहना है-एक हजारों में मेरी बहना है" के साथ करते है। मुख्यमंत्री का यह जुदा अंदाज प्रदेश की बहनों को खूब भा रहा है।
राज्य सरकार की 03 साल की प्रमुख उपलब्धियां - एक नजर में
भोपाल। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत मुद्दों से जूझते विश्व की पर्यावरणीय सुरक्षा के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा फ्रांस में नवम्बर 2015 में लिये गए संकल्प में मध्यप्रदेश बेहतरीन योगदान दे रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश ने पिछले 11 वर्षों में सोलर ऊर्जा में 54 और पवन ऊर्जा में 23 प्रतिशत की वृद्धि की है। वर्तमान में साढ़े पाँच हजार मेगावाट ग्रीन ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। इससे एक करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है जो 17 करोड़ पेड़ के बराबर है।
भोपाल। देश के विकास में भारतवंशियों के योगदान पर गौरवान्वित होने के लिए हर साल 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।इस बार 9 जनवरी 2023 को प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन मध्यप्रदेश की धरती इंदौर में होने जा रहा है, जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव और सौभाग्य की बात है। देश का सबसे साफ शहर इंदौर सभी प्रवासी भारतीयों का स्वागत करने के लिए आतुर है।
मध्यप्रदेश सरकार की स्टार्ट-अप फ्रेंडली नीतियों के परिणामस्वरूप प्रदेश स्टार्टअप्स का हब बन रहा है। मध्यप्रदेश, देश के उन अग्रणी राज्यों में शामिल है, जो स्टार्ट-अप्स के लिए विश्व स्तरीय ईकोसिस्टम प्रदान करते हैं। स्टार्ट-अप ब्लिंक की रिपोर्ट के अनुसार देश में इंदौर 14वें स्थान पर और भोपाल 29वें स्थान पर है। मध्यप्रदेश के 2500 से अधिक स्टार्ट-अप भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग में पंजीकृत हैं।
भोपाल। पशुपालन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश अनेक राष्ट्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में देश में प्रथम स्थान पर है। अन्य राज्यों के लिए मध्यप्रदेश मॉडल राज्य के रूप में उभरा है।
राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम में प्रदेश में 2 करोड़ 92 लाख 51 हजार गौ-भैंस वंशीय पशु पंजीकृत हैं। इन पशुओं को यूआईडी टैग लगा कर इनॉफ पोर्टल पर दर्ज किया गया है, जो देश में सर्वाधिक है।
मध्यप्रदेश को यह गौरव हासिल है कि यह देश की सर्वाधिक जनजातीय जनसंख्या का घर है। प्रदेश का इन्द्रधनुषीय जनजातीय परिदृश्य अपनी विशिष्टताओं की वजह से मानव-शास्त्रियों, सांस्कृतिक अध्येताओं, नेतृत्व शास्त्रियों और शोधार्थियों के विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहाँ की जनजातियाँ सदैव से अपनी बहुवर्णी संस्कृति, भाषाओं, रीति-रिवाज और देशज तथा जातीय परम्पराओं के साथ प्रदेश के गौरव का अविभाज्य अंग रही है।
मध्यप्रदेश के इन्द्रधनुषी जनजातीय संसार में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ आदिम मुस्कान बिखेरता हुआ पहाड़ी झरने की तरह गतिमान है। मध्यप्रदेश सघन वनों से आच्छादित एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा और अन्य पर्वत-श्रेणियों के उन्नत मस्तकों का गौरव-गान करती हवाएँ और उनकी उपत्यकाओं में अपने कल-कल निनाद से आनंदित करती नर्मदा, ताप्ती, तवा, पुनासा, बेतवा, चंबल, दूधी आदि नदियों की वेगवाही रजत-धवल धाराएँ मानो,वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियाँ।
धरती पुत्र शिवराज सिंह चौहान ने जबसे प्रदेश की कमान सम्हाली है, तभी से स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने को साकार करने में हर पल गुजरा है। मुख्यमंत्री श्री चौहान कहते हैं कि प्रदेश के सर्वांगीण विकास में किसान की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसी सोच के मद्देनजर किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये निरंतर कार्य किये हैं, जो आज भी बदस्तूर जारी हैं। अपनी स्थापना के 67वें वर्ष में मध्यप्रदेश कृषि के क्षेत्र में अग्रणी प्रदेश है, जिसने कई कीर्तिमान रचते हुए लगातार 7 बार कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त किया है।