बिजली संकट को दूर कर प्रकाशवान बना मध्यप्रदेश

  • प्रलय श्रीवास्तव

याद करिये 11-12 साल पहले के उस दौर को जब आप बाजार से घर लौट रहे होते थे या आपके यहाँ शादी-ब्याह, बर्थ-डे मनाया जा रहा होता था अथवा आपका बच्चा परीक्षा की अंतिम तैयारी कर रहा होता था कि अचानक बिजली चली जाती थी। ऐसा अंधेरा जिस पर न सिर्फ चुटकुले बनते थे बल्कि वह लोगों के सपनों को भी अंधकारमय बनाता था। वह दौर था बिजली के भयावह संकट और अघोषित कटौती का। तब बिजली की कमी से जूझते मध्यप्रदेश में आने के लिये कोई निवेशक तैयार नहीं होता था। तब बाजारों में लालटेन, गैस-बत्ती और इमरजेंसी लाइट बहुतायत में बिकती थी। विवाह-सम्मेलन को जनरेटर की व्यवस्था पर निर्भर रहना पड़ता था। ऐसे दौर के बाद वर्ष 2004-05 में बने नये माहौल में मध्यप्रदेश को बिजली के संकट से उबारने का बीड़ा उठाया जमीनी हकीकत से जुड़े तथा आम-जन की तकलीफ को समझने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने।

बिजली क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बना प्रदेश

ग्यारह साल के बीते दौर में बिजली के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य हुए, जिनके फलस्वरूप आज न सिर्फ मध्यप्रदेश आत्म-निर्भर है, ब‍ल्कि दूसरे राज्यों को बिजली सप्लाई करने में भी सक्षम हो चुका है। मुख्यमंत्री की सोच और चिंतन ने मध्यप्रदेश को बिजली के क्षेत्र में सरप्लस स्टेट बना दिया है। आज मध्यप्रदेश में बिजली की माँग की तुलना में उपलब्धता का अनुपात काफी अधिक है। प्रदेश ने पारम्परिक बिजली उत्पादन के साथ नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन में भी देश में विशिष्ट स्थान अर्जित कर लिया है।

बिजली क्षमता 5173 से 17,402 मेगावाट हुई

राज्य सरकार के सार्थक प्रयासों का ही सुफल है कि ग्यारह साल पहले वर्ष 2005 में जहाँ बिजली की उपलब्ध क्षमता 5173 मेगावाट थी, वहीं अब 224 प्रतिशत बढ़कर 16 हजार 800 मेगावाट और अब बढ़कर 17 हजार 402 मेगावाट हो गयी है। विद्युत प्रदाय 28 हजार 599 मि.यू. से बढ़कर 64 हजार 149 हो गया है। अधिकतम माँग की पूर्ति, जो 11 साल पहले 4984 मेगावाट थी, अब 10 हजार 841 मेगावाट हो गयी है। अति उच्च-दाब उप-केन्द्र की संख्या, जो ग्यारह वर्ष पूर्व मात्र 162 थी, अब 314 हो गयी है। अति उच्च दाब लाइन 18 हजार 48 सर्किट किलोमीटर से बढ़कर 31 हजार 844 सर्किट किलोमीटर तक पहुँच चुकी है। ट्रांसमिशन प्रणाली की क्षमता में भी 193 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज हुई है, जो 4805 मेगावाट से बढ़कर 14 हजार 100 मेगावाट हो चुकी है। प्रदेश में 33 के.व्ही. लाइन 29 हजार 556 किलोमीटर से बढ़कर 48 हजार 37 किलोमीटर तक पहुँच चुकी है। इसी प्रकार 11 के.व्ही लाइन, जो ग्यारह साल पहले एक लाख 60 हजार किलोमीटर थी, बढ़कर 3 लाख 33 हजार किलोमीटर तक पहुँच गयी है। वितरण ट्रांसफार्मर, जो पहले एक लाख 68 हजार थे, अब बढ़कर 5 लाख 35 हजार हो गये हैं। राज्य में बिजली उपभोक्ता 64 लाख 40 हजार से बढ़कर एक करोड़ 22 लाख 75 हजार हो गये हैं।

वर्ष 2003-04 से विद्युत उपलब्धता में वृद्धि

उपभोक्ताओं को विद्युत प्रदाय के लिये दीर्घकालीन विद्युत क्रय अनुबंध निष्पादित किये गये हैं। वर्ष 2003-04 से वर्ष 2015-16 तक राज्य की विद्युत की उपलब्ध क्षमता में वृद्धि की वर्षवार जानकारी सारणी में है।-*

-राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2013 में संचालित अटल ज्योति अभियान ने प्रदेश में बिजलीकी दिशा और दशा दोनों में बदलाव किया है। अभियान के सफल संचालन से सभी गैर-कृषि उपभोक्ताओं को 24 घंटे तथा कृषि उपभोक्ताओं को 10 घंटे बिजली मिलना सुनिश्चित होने से मध्यप्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो चुका है, जहाँ 24×7 विद्युत प्रदाय हो रहा है। सतत बिजली आपूर्ति बनाये रखने में फीडर सेपरेशन की योजना का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रदेश में 11 के.व्ही. के 6706 फीडर का विभक्तिकरण किया जा चुका है। वर्ष 2005 से राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में विद्युतीकरण के उल्लेखनीय कार्य हुए हैं।

मध्यप्रदेश को बिजली के संकट से निकालने के लिये वित्तीय संसाधन की कोई कमी नहीं रही। वर्ष 2004 में ऊर्जा विभाग का बजट 1384 करोड़ 68 लाख था, जिसमें उत्तरोत्तर वृद्धि कर वर्ष 2016-17 में 20 हजार 997 करोड़ किया गया। राज्य सरकार दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के माध्यम से ग्रामीण विद्युतीकरण, फीडर सेपरेशन, मीटरीकरण तथा प्रणाली सुदृढ़ीकरण के कार्य करने जा रही हैं। इसके लिए सभी जिलों की 50 योजना के लिए 2865 करोड़ की मंजूरी भारत सरकार से प्राप्त हुई है। कृषि उपभोक्ताओं को मिल रही पर्याप्त बिजली के परिणामस्वरूप प्रदेश को पिछले चार वर्ष से लगातार कृषि कर्मण अवार्ड मिल रहा है।-

-बिजली के अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिये एलटी लाईन के स्थान पर एरियल बंच केबल का उपयोग तथा उदय योजना के अनुसार स्मार्ट मीटर आदि लगाने का योजनाबद्ध कार्यक्रम चलाया गया। घरेलू फीडरों में एटी एंड सी हानियों में कमी लाने के लिए निम्नदाब लाईन का एरियल बंच केबल में परिवर्तन करवाया गया है।

प्रदेश में अस्थायी कृषि पंप कनेक्शनों को स्थायी कृषि पंपों में बदलने की व्यापक मुहिम चलाई गई। इसके लिए कृषक अनुदान योजना लागू की गई। योजना में स्थायी कृषि पंप कनेक्शन के अधोसंरचना कार्यों के लिए वितरण कंपनी को अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है। किसानों द्वारा स्वयं का ट्रांसफार्मर लगाने के लिए 'Own Your Transformer' योजना भी लागू की गई है। विगत पाँच वर्ष में स्थायी कृषि पंप 10 लाख 66 हजार से बढ़कर 22 लाख 4 हजार तथा अस्थायी कृषि पम्प की संख्या 10 लाख 8 हजार से घटकर 5 लाख 10 हजार रह गयी है। वर्तमान में 'मुख्यमंत्री स्थायी कृषि पम्प कनेक्शन योजना'' लागू की गयी है। इसमें अस्थायी कृषि पम्पों को स्थायी पम्पों में बदलने तथा नये स्थायी पम्प कनेक्शन प्रदान किये जायेंगे। योजना की लागत लगभग 4000 करोड़ रुपये है। योजना का काम जून, 2019 तक पूरा किया जाना है।

53 हजार 660 गाँव विद्युतीकृत

प्रदेश में पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से कुल 53 हजार 660 आबाद ग्रामों का विद्युतीकरण किया जा चुका है। पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से मात्र 7 आबाद ग्राम का विद्युतीकरण किया जाना शेष है, जो इस वित्त वर्ष में कर दिया जायेगा।

वर्ल्ड बैंक द्वारा विद्युत कनेक्शन प्रदाय मापदंड की सराहना

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में नये औद्योगिक विद्युत कनेक्शन के लिये आवश्यक 14 दस्तावेज को घटाकर 2 तक सीमित किया गया है। औद्योगिक कनेक्शन लेने के लिये पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण-पत्र की जरूरत को भी समाप्त कर दिया गया है। राज्य सरकार ने 33 के.व्ही. वोल्ट तक की नयी स्थापनाओं के चार्जिंग के लिये विद्युत निरीक्षक द्वारा चार्जिंग परमिशन दिये जाने की अनिवार्यता को समाप्त कर, स्व-प्रमाणन की व्यवस्था को लागू करते हुए चार्टर्ड सुरक्षा इंजीनियर को अधिकृत किया गया है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही को वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में सराहा गया तथा टीप दी गयी कि देश में मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है, जिसने विद्युत कनेक्शन दिये जाने के सभी पाँच मापदण्ड का पूरी तरह पालन किया है।

लोक सेवा प्रदाय गारंटी अधिनियम-2010 में विद्युत क्षेत्र की 15 सेवाओं को शामिल किया गया है। इनमें नये कनेक्शन, बंद-खराब मीटर/बदलना, अधोसंरचना के कार्य, कॉलोनियों के विद्युतीकरण के कार्य, सौर और पवन ऊर्जा के उत्पादकों को ग्रिड से संयोजन प्रदान करने की सैद्धांतिक स्वीकृति देना प्रमुख है। इस अधिनियम में शामिल सेवाओं के लिये समय-सीमा निर्धारित है तथा विलंब होने पर पेनाल्टी का प्रावधान भी है।
 

 

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