MP Govt Crisis : मध्‍य प्रदेश में आनन-फानन में बनाए तीन जिले, न जिला पुनर्गठन आयोग बनाया और ना बुलाए दावे-आपत्ति

भोपाल । MP Govt Crisis कमल नाथ सरकार ने सियासी घटनाक्रम के बीच मैहर, चाचौड़ा और नागदा को जिला बनाने का सैद्धांतिक निर्णय तो कैबिनेट में कर लिया पर इसके लिए कोई तैयारी नहीं की गई। अभी न तो यह तय है कि दो या अधिक जिलों की तहसीलों को मिलाकर नया जिला बनेगा या फिर मौजूदा जिले की तहसीलें और पटवारी हलके ही इधर के उधर किए जाएंगे।

सरकार ने फैसला इतनी जल्दबाजी में लिया कि न तो जिले बनाने के लिए प्रारंभिक प्रकाशन करके दावे-आपत्ति बुलाए गए और न ही जिला पुनर्गठन आयोग बनाया। इतना ही नहीं जब यह निर्णय लिया गया तब कैबिनेट के राजस्व मंत्री जीतू पटवारी सहित आठ सदस्य मौजूद नहीं थे। प्रस्ताव भी चंद मिनटों में ही मंजूर कर दिया गया।

नए जिलों के गठन का निर्णय करने के साथ ही सियासत भी शुरू हो गई है। भाजपा नेता डॉ.नरोत्तम मिश्रा अल्पमत की सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों को निरस्त करने की बात कह रहे हैं तो पूर्व प्रशासनिक अधिकारी भी सरकार के कदम पर सवाल उठा रहे हैं।

उधर, पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि छोटे जिले बनाने से प्रशासकीय व्यय बढ़ता है, जो वित्तीय प्रबंधन की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है। जिला गठन का निर्णय बड़ा कदम होता है। इसके लिए पहले औचित्य देखा जाना चाहिए। यह काम आनन-फानन में नहीं हो सकता है, इसलिए जिला पुनर्गठन आयोग गठित करने की व्यवस्था बनाई गई थी। कैबिनेट में प्रस्ताव रखने के पहले विस्तृत विचार-विर्मश किया जाना चाहिए। यह देखा जाना चाहिए कि नए जिला बनाने से क्या विकास के कामों को गति मिलेगी।

प्रशासकीय सुविधा होगी या फिर आमजन के लिए यह सुविधाजनक रहेगा। पहले जिले काफी बड़े-बड़े हुआ करते थे, इसलिए लोगों को तहसील मुख्यालय आने में काफी असुविधा होती थी। प्रभावी कानून व्यवस्था के लिए जिला का पुनर्गठन जरूरी थी लेकिन मध्यप्रदेश अब विभाजित हो चुका है। छत्तीसगढ़ के रूप में बड़ा हिस्सा अलग हो चुका है। नया राज्य बनाने से सरकार का स्थापना व्यय बढ़ता है और सरकारी कार्यालय सहित अनय सुविधाओं के विकास में बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है।

मौजूदा आर्थिक स्थिति में इस तरह के निर्णय टाले जा सकते हैं। सिर्फ जनप्रतिनिधि या कुछ संगठनों की मांग के आधार पर कलेक्टरों के भेजे प्रतिवेदन पर निर्णय लेने से बेहतर होता कि दावे-आपत्ति बुलाकर लोगों का मत ले लिया जाता। कैबिनेट में मंत्रियों की कम उपस्थिति पर शर्मा ने कहा कि इसमें निश्चित संख्या का बंधन तो नहीं रहता है पर व्यापक असर वाले निर्णय चर्चा के बाद ही होने चाहिए। यही परंपरा भी रही है।

शिवराज सरकार में बने थे आगर-मालवा और निवाड़ी

ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दृष्टिकोण से नए जिले बनाने का फैसला सिर्फ कमल नाथ सरकार में लिया गया है। इसके पहले शिवराज सरकार में भी शाजापुर का विभाजन कर आगर-मालवा और टीकमगढ़ को बांटकर निवाड़ी जिला बनाया गया था।

मध्यप्रदेश का 51वां जिला आगर-मालवा 16 अगस्त 2013 को बनाया गया। वहीं, 52वां जिला निवाड़ी सितंबर 2018 में बनाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2013 के विधानसभा चुनाव के समय आमसभा में निवाड़ी को जिला बनाने की घोषणा की थी। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सितंबर में निवाड़ी को जिला बनाने का निर्णय लिया था।

उप्र की तरह जनगणना का फंस सकता हैं पेंच

सूत्रों का कहना है कि नए जिलों के गठन में उत्तरप्रदेश की तरह जनगणना का पेंच भी फंस सकता है। तत्कालीन मायावती सरकार ने एक जुलाई 2010 को अधिसूचना जारी करके रायबरेली जिले की तीन विधानसभा (सलोन, तिलोई और सुलतानपुर) और सुलतानपुर जिले की तीन विधानसभा (अमेठी, मुसाफिरखाना और गौरीगंज) को जोड़कर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर नाम से नया जिला बना दिया था। जब यह जिला बनाया गया तब जनगणना चल रही थी और केंद्र सरकार ने नए जिले के गठन पर रोक लगा रखी थी। नए जिले के गठन को लेकर इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

अखिलेश यादव ने सत्ता में आने पर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर जिले का नाम बदलकर अमेठी कर दिया। इसी बीच हाईकोर्ट ने नया जिला बनाने की अधिसूचना को गैर कानूनी करार देते हुए निरस्त कर दिया था। जनगणना 2021 का पहला चरण 22 अप्रैल से शुरू होना है। केंद्र सरकार इसकी अधिसूचना जारी कर चुकी है। इसके मद्देनजर ऐसा माना जा रहा है कि तीनों नए जिलों के गठन में पेंच फंस सकता है।

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