हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई के आरंभ से शुरू हो रहा है नया युग : मुख्यमंत्री

  • मुख्यमंत्री ने "हिन्दी की व्यापकता एक विमर्श" कार्यक्रम को संबोधित किया
  • भारत भवन में राजधानी के प्रमुख हिन्दी सेवियों ने साझा किए अपने विचार

भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि हिन्दी माध्यम की शिक्षा कई विद्यार्थियों के जीवन में नया प्रकाश लेकर आयेगी। हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई के साथ एक नया युग शुरू हो रहा है। यह एक सामाजिक क्रांति है। गरीब परिवार का बेटा भी मेडिकल की पढ़ाई के बारे में सोच सकेगा। प्रदेश में मातृ-भाषा हिन्दी में अध्ययन और अध्यापन को प्रोत्साहित करने और हिन्दी के लिए गर्व की अनुभूति उत्पन्न कराने के उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से गतिविधियाँ जारी हैं।


 हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना, प्रदेश के विभिन्न अंचलों के निवासियों को भावनात्मक रूप से बाँधने के लिए मध्यप्रदेश गीत को कार्यक्रम और उत्सव का भाग बनाने की पहल, पाणिनी संस्कृत विद्यालय की स्थापना और भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन इसी उद्देश्य से किया गया। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज भारत भवन के अंतरंग सभागार में चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित "हिन्दी की व्यापकता एक विमर्श" कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

 

मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संकल्प व्यक्त किया गया है कि शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा हो, नई शिक्षा नीति में भी इस भावना का प्रकटीकरण हुआ है। मध्यप्रदेश ने देश में पहली बार मेडिकल की पढा़ई हिन्दी में कराने का संकल्प लिया। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग के नेतृत्व में हिन्दी में मेडिकल की पाठ्य-पुस्तकें विकसित हुईं। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह 16 अक्टूबर को भोपाल में मेडिकल की हिन्दी पुस्तकों का लोकार्पण करेंगे। अपनी मातृ-भाषा हिन्दी में शिक्षा को नया आयाम देना हमारे लिए स्वाभिमान और गौरव का क्षण होगा।

 

चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग, भोपाल महापौर मालती राय, हिन्दी सेवी पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा, कैलाश चंद्र पंत, वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव, राजेन्द्र शर्मा, विजयदत्त श्रीधर, रमेश शर्मा, रवीन्द्रनाथ टेगौर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे, पूर्व महापौर आलोक शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता सुमित पचौरी विशेष रूप से उपस्थित थे।

 

मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि अंग्रेजी के सरल और चलन में आ चुके शब्दों के देवनागरी लिपि में अधिक से अधिक उपयोग से मेडिकल और तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई विद्यार्थियों के लिए सरल होगी। हिन्दी को लेकर मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। अंग्रेजी भाषा से ही हम समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त करते हैं, इस सोच को बदलना होगा। भाषा से व्यक्ति कुंठित हो, उसमें हीन-भावना उत्पन्न हो, इस स्थिति से मुक्ति आवश्यक है। हमें अंग्रेजी के भय को समाप्त करना है। हिन्दी भाषा में पढ़ाई से कस्बों और ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा के प्रकटीकरण का अवसर मिलेगा। मध्यप्रदेश की यह पहल सामाजिक क्रांति सिद्ध होगी।

 

मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि जब माता-पिता अपनी मातृ-भाषा हिन्दी पर गौरव और सम्मान का प्रकटीकरण करेंगे तभी बच्चे भी हिन्दी को आत्म-सात कर उसे जीवन में अपनाने के लिए अग्रसर होंगे। हिन्दी का संपूर्ण विश्व में सम्मान है। मैंने सभी विदेश यात्राओं में अपनी मातृ-भाषा हिन्दी में ही संबोधन दिए हैं, सभी जगह हिन्दी को सम्मान से सुना जाता है। राज्य सरकार द्वारा मातृ-भाषा हिन्दी में पढ़ाई का विस्तार इंजीनियरिंग, पॉलीटेक्निक, नर्सिंग और पैरामेडिकल में भी किया जाएगा।

 

चिकित्सा शिक्षा मंत्री सारंग ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के संकल्प के क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री चौहान द्वारा सौंपे गए दायित्व के निर्वहन में शासकीय मेडिकल कॉलेज के 97 चिकित्सक की टीम ने 4 माह के परिश्रम से एमबीबीएस प्रथम वर्ष की पुस्तकें विकसित की।

 

हिन्दी सेवी कैलाश चंद्र पंत ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान के नेतृत्व में हिन्दी में शिक्षा आरंभ हुई। यह पहल अंग्रेजी भाषा की मानसिक गुलामी से मुक्ति की दिशा में उठाया गया प्रभावी कदम सिद्ध होगी। प्रदेश के कस्बों और गाँवों में भी जन-जन को हिन्दी में शिक्षा सुविधा के संबंध में जागरूक कर उन्हें हीन-भावना से मुक्त कराने के लिए गतिविधियाँ संचालित की जाएँ।

 

वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि इस पहल से यह भ्रम दूर होगा कि तकनीकी विषयों की शिक्षा हिन्दी में नहीं हो सकती। उन्होंने हिन्दी भाषी विद्यार्थियों में आत्म-विश्वास के लिए देश की संस्कृति, स्वाभिमान, मानवीय मूल्यों पर प्रति शनिवार स्कूल और कॉलेजों में संगोष्ठियाँ करने का सुझाव दिया।

 

वरिष्ठ पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश के युवाओं को अंग्रेजी के भय से मुक्त किया है। कस्बाई और ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थियों में भाषायी अस्मिता और मातृ-भाषा के गौरव के लिए स्वदेशी आंदोलन के समान हिन्दी के आंदोलन का घर-घर में विस्तार किया जाना चाहिए।

 

रवीन्द्रनाथ टेगौर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कृषि के अध्ययन के लिए हिन्दी में पुस्तकें विकसित करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि माता-पिता की प्राय: यह सोच होती है कि अंग्रेजी में पढ़ाई से ही बच्चों का भविष्य सँवरेगा। इस मानस को बदलना आवश्यक है। विश्व के 112 विश्वविद्यालय में हिन्दी पढा़ई जा रही है। तकनीकी में आए बदलाव से भी हिन्दी का बहुत विस्तार हुआ है।

 

पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना कर इस दिशा में कदम उठाए गए थे। हिन्दी के प्रोत्साहन के साथ हिन्दी की शुद्धता और सुरक्षा के लिए भी कदम उठाना आवश्यक है। मानस भवन के कार्यकारी अध्यक्ष रघुनंदन शर्मा ने कहा कि हिन्दी के सरल शब्दों के उपयोग से भाषा की लोकप्रियता बढ़ेगी। डॉक्टरों को अपने मरीजों से हिन्दी में बात करने और दवा के पर्चे देवनागरी में लिखने की पहल करना चाहिए। पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में हुई इस पहल के लिए मुख्यमंत्री चौहान को शुभकामनाएँ दी।

 

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