जब सूर्य देव गुरू बृहस्पति की राशियों मे प्रवेश करते हैं तो खरमास का आरंभ होता है। 15 मार्च 2019 को सूर्य ने मीन राशि में प्रवेश किया था। इसके पश्चात शुभ व मांगलिक कार्य रुक गए थे। अब 14 अप्रैल, 2019 की दोपहर 2 बज कर 8 मिनट पर सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर जायेंगे और सभी शुभ कार्य जैसे मुंडन, गृहप्रवेश आदि शुरू हो कर शहनाई की धुन गूंजने लगेगी।
आज चैत्र नवरात्रि का अष्टमी और नवमी का दिन दोनों ही है. ऐसे में नवमी के दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था. ऐसे में रामनवमी पर भगवान श्रीराम की अपने जन्म लग्नानुसार आराधना करने का अत्यधिक लाभ होना शुरू हो जाता है. कहा जाता है रामनवमी के दिन 12 बजे भगवान श्रीरामजी की आराधना करना चाहिए और उनकी आरती और उनके मन्त्रों से उन्हें खुश करना चाहिए. तो आइए आज जानते हैं भगवान राम के मंत्र और उनकी आरती.
दुर्गा सप्तशती में वर्णन आता है कि शुंभ निशुंभ से पराजित होकर गंगा के तट पर देवताओं ने जिस देवी की प्रार्थना की थी वह महागौरी ही थीं। देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ था जिसने शुंभ निशुंभ के आतंक से देवताओं को मुक्ति दिलाई थी। देवी गौरी, भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और इस कारण वे शिवा और शाम्भवी नाम से भी पूजी जाती हैं। मां को गौर वर्ण कैसे मिला इससे जुड़ी एक रोचक कथा है। इसमें बताया गया है कि भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की जिससे इनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इन्हें स्वीकार किया और गंगा जल की धार जैसे ही देवी पर पड़ी वे विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान और गौर वर्ण की हो गईं , तभी से उन्हें मां महागौरी नाम भी मिला।
पंडित दीपक पांडे के अनुसार नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। इन्हें मोक्ष के द्वार खोलने वाली परम सुखदायी माना जाता है। ये भी कहा जाता है कि स्कंदमाता के रूप में वे अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में अत्यंत महत्व बताया गया है। कहते हैं इस चक्र में अवस्थित मन वाले भक्तों की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।
आप सभी जानते ही हैं कि नवरात्रि प्रारम्भ हो चुकी है ऐसे में आज नवरात्रि का तीसरा दिन है. ऐसे में इस दिन माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है जिनकी आराधना करते हैं. कहते हैं नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है. इसी के साथ इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है और माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं. ऐसे में इस दिन भक्तों को अत्यंत सावधान रहने कि आवश्यकता होती है. आज के दिन माँ की आरती बड़े विधान से करनी चाहिए. तो आइए जानते हैं आज चंद्रघंटा माँ की आरती.
6 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि के साथ नव संवत्स्र का भी आरंभ हो रहा है। जानें कौन से ग्रह हैं इस वर्ष के राजा और मंत्री, जिनके प्रभाव से देश काल की गतिविधियां तय होंगी।
दुर्गा सप्तशती में माता के विभिन्न रूपों का वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है। जानें कि कैसे करें इस नवरात्रि उनके नवरूप की पूजा।
चैत्र नवरात्रि के लिये घटस्थापना चैत्र प्रतिपदा को होती है जो कि हिन्दू कैलेण्डर का पहला दिवस होता है। अतः साल के प्रथम दिन से अगले नौ दिनों तक माता की पूजा कर वर्ष का शुभारम्भ होता है। चैत्र नवरात्रि को वसन्त या वासंतिक नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। भगवान राम का जन्मदिवस चैत्र नवरात्रि के अन्तिम दिन पड़ता है इसीलिए इनको राम नवरात्रि भी कहा जाता है। मां दुर्गा की पूजा का ये पर्व इस बार 6 अप्रैल 2019 शनिवार से शुरू हो रहा है, जो 14 अप्रैल को राम नवमी के त्योहार के साथ सम्पन्न पूर्ण होगा। पंडित दीपक पांडे के अनुसार, इस बार नवरात्रि 8 दिनों की हैं आैर देवी मां इस वर्ष घोड़े पर सवार होकर आयेंगी। ज्योतिष के अनुसार इसका फल छत्रभंग होता है। नवरात्रि के पर्व पर देवी के नौ शक्ति रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, आैर सिद्धिदात्री की पूजा होती है।
हिंदू कलैंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की ग़लती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है, परंतु शास्त्रों के अनुसार पापमोचिनी एकादशी का व्रत रख कर पाप के दंड से बचा जा सकता हैं। पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पाप मोचिनी कहते हैं। जिसका अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली। एक कथा के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है, तब उन्होंने इस दिन की महत्ता वर्णित की थी।
आप सभी को बता दें कि गुड़ी पड़वा', चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी साढ़े तीन शुभ मुहूर्तों में से एक है और सोने की लंका जीत राम के अयोध्या लौटने का दिन यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा कहा जाता है. कहते हैं जब अयोध्यावासियों ने गुड़ी तोरण लगाकर अपनी खुशी का इजहार किया था और इसी कारण गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. तभी से चैत्र प्रतिपदा पर गुड़ी की परंपरा का श्रीगणेश हुआ व यह दिन 'गुड़ी पड़वा' बतौर जाना गया.