नेपाल में भैंसों की बलि रोकने की मुहिम से निकले नियम

वध के लिए पशु बाजारों में मवेशियों की खरीद फरोख्त पर पाबंदी लगाने के केंद्र सरकार के फैसले पर देशभर में बहुत हंगामा हो रहा है। दरअसल इसकी शुरुआत पड़ोसी देश नेपाल में जानवरों पर होने वाले अत्याचार पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका से हुई। सरकार का कहना है कि जानवरों पर अत्याचार (पशु बाजारों का नियमन) नियम, 2017 को उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर तैयार किया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने पशु कल्याण कार्यकर्ता गौरी मुलेखी की याचिका पर सरकार को यह निर्देश दिया था। मुलेखी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, 'सरकार ने यह नियम बनाकर अच्छा काम किया है। लेकिन कई गुमराह लोग इसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें देखना चाहिए कि वध के लिए लाए गए जानवरों को पशु बाजारों में नारकीय स्थिति में रखा जाता है। मैं नए नियमों से खुश हूं। अगर हमें एक राष्ट्र के रूप में सुरक्षित होना है तो हमें अपने जानवरों को पशु माफिया से बचाना होगा।' मुलेखी की याचिका का उम्मीद से बढ़कर परिणाम सामने आया है।

उन्होंने कहा, 'जनहित याचिका की यही खूबी है। इसके किसी विशेष मुद्दे तक सीमित होने की जरूरत नहीं है। मैं नेपाल में पशु की बलि पर रोक चाहती थी, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न पशु बाजारों में पशुओं के साथ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए नियम बनाने का निर्देश दे दिया।' याचिका में कहा गया था कि नेपाल में भारत सीमा के पास स्थित बरियापुर गांव में हर पांचवें साल होने वाले गढ़ीमाई मेले में बलि देने के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल से पशुओं को अवैध रूप से वहां ले जाया जाता है। दो दिन के इस मेले में 5 लाख जानवरों की बलि दी जाती है। यह दुनिया में सबसे बड़ा पशु बलि मेला है। याचिका में अदालत से इसमें हस्तक्षेप की मांग की गई थी।

मामले की एक और सुनवाई 5 जनवरी, 2015 को हुई। लेकिन मामले में प्रतिवादी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार ने इस मुद्दे के दीर्घकालीन हल के लिए ज्यादा समय की मांग की। न्यायालय ने सुनवाई की तिथि 16 मार्च, 2015 तय की। उस दिन अदालत ने एसएसबी को इन सभी राज्यों के साथ बैठक करने और मुद्दे से कारगर ढंग से निपटने के लिए व्यापक योजना बनाने को कहा। न्यायालय ने गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एसएसबी और सभी संबंधित राज्यों को एक महीने के भीतर इसका समाधान खोजने को कहा।

राज्यों के साथ बैठक के बाद एक रिपोर्ट अदालत को सौंपी गई। इस रिपोर्ट में सबसे प्रमुख सिफारिश जानवरों पर अत्याचार रोकने के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा गठित संस्थाओं में आमूलचूल बदलाव की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि ये संस्थाएं काम नहीं कर रही हैं और कुछ राज्यों ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद इनका गठन नहीं किया है। सीमावर्ती जिलों में ऐसी हर संस्था में एसएसबी के एक सदस्य को शामिल करने की सिफारिश भी की गई थी। साथ ही पशु कल्याण योजनाओं में केंद्र सरकार को व्यापक स्तर पर शामिल करने का भी सुझाव दिया गया था।

रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत और नेपाल के अर्धसैनिक बलों और संयुक्त सचिव स्तर की द्विपक्षीय सलाहकार दल की बैठकों में नेपाल के गढ़ीमाई मेले और बलि के मुद्दे को भी शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को भारत-नेपाल सीमा पर पशु तस्करी की खुफिया जानकारी एकत्र करनी चाहिए। पकड़े गए जानवरों को लाने ले जाने और उनके पुनर्वास के उपाय करने की भी सिफारिश की गई थी। लेकिन दो सिफारिशें ऐसी हैं जो मोदी सरकार के नए नियमों को लेकर उठे विवाद के केंद्र में हैं। नए नियमों की प्रेरणा यही दो सिफारिशें हैं।

दूसरी सिफारिश में पशु हाट और मेलों पर लगाम लगाने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि पशु बाजारों के नियमन के लिए नियम बनाए जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल कानूनी रूप से मान्य उद्देश्यों के लिए स्वस्थ जानवरों को ही बेचा जा सके। मोदी सरकार के जानवरों पर अत्याचार (पशु बाजारों का नियमन) नियम, 2017 में यह सुनिश्चित किया गया है कि दोनों सिफारिशों को जमीन पर मजबूत कानून में बदला जाए। नए नियमों में जिला पशु बाजार निगरानी समिति बनाने को कहा गया है। जिलाधिकारी इस समिति का अध्यक्ष होगा और इसमें छह अन्य सदस्य होंगे। इस समिति को पशु बाजारों के हर पहलू की निगरानी के अधिकार दिए गए हैं। इन्हीं अनियमित बाजारों में हजारों पशुओं को वध के लिए बेचा जाता है।

नए नियमों में कहा गया है कि पशु बाजारों से मवेशी खरीदने वाला व्यक्ति उन्हें वध के लिए नहीं बेचेगा। पशु बाजारों से खरीदे गए किसी भी पशु की बलि नहीं दी जाएगी। बांग्लादेश और नेपाल का सीधा संदर्भ दिए बिना नियमों में कहा गया है कि राज्य सीमा के 25 किलोमीटर और अंतरराष्ट्रीय सीमा के 50 किलोमीटर के दायरे में कोई भी पशु बाजार आयोजित नहीं किया जाएगा। लगता है कि भारत की भैंसों को नेपाल के देवताओं की बलि चढ़ाने से रोकने को लेकर शुरू हुई मुहिम का परिणाम यह निकला कि देशभर में कुछ लोग नाराज हो गए।

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