ऐसे हुआ नार्थ कोरिया में चुनाव, किम जोंग उन को मिले 99.98% वोट

क्या आपको पता है कि उत्तर कोरिया में अभी-अभी चुनाव हुआ है. ये चुनाव उत्तर कोरिया का नया शासक, नई सरकार चुनने के लिए था. एक ऐसे मुल्क में चुनाव जहां तानाशाही है, जहां तानाशाह है. वहीं चुनाव भी हुआ और नया लीडर भी चुन लिया गया. सबसे कमाल की बात ये है कि मार्शल किम जोंग उन इस चुनाव में भारी नहीं बल्कि सारी मतों से जीत गए. अब किसकी शामत आई थी जो मार्शल किम जोंग उन का वोट काट सकता था?

सीन फिल्मी है.. कहानी एक मुल्क की है जहां तानाशाही थी. दुनिया के दबाव में तानाशाह झुकता है. ऐलान करता है कि उसके देश में लोकतंत्र होगा और जनता खुद अपनी सरकार चुनेगी. चुनाव की तारीख तय होती है. लोग अपनी सरकार चुनने के लिए वोट देने क़तार में खड़े हो जाते हैं. जनता तानाशाह के मुकाबले दूसरे उम्मीदवार को वोट डाल रही थी. बस तभी एक तोप नज़र आती है. लाइन बदल जाती है. तानाशाह चुनाव जीत जाता है. दुनिया लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए तानाशाह की भरपूर तारीफ करती है.

अब इस सीन से बाहर आते हैं. वो देश नॉर्थ कोरिया है. वहां भी तानाशाही है. पर तानाशाह चुनाव कराना चाहता है. ताकि दुनिया को बता सके कि वो भी लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया है. जी हां, हम उत्तर कोरिया के तानाशाह मार्शल किम जोंग उन की ही बात कर रहे हैं. दुनिया जानती है किम जोंग उन एक तानाशाह है. उसकी मर्ज़ी के बिना उत्तर कोरिया में कोई सांस भी नहीं ले सकता. वहीं किम जोंग उन अगर चुनाव में खड़ा हो जाए तो फिर किसकी हिम्मत जो उसके मुकाबिल हो. पर फिर भी उत्तर कोरिया में चुनाव हुआ. चुनाव में किम जोंग उन खड़ा हुआ और चुनाव जीत भी गया.

पर ये सब हुआ कैसे. किम जोंग उन ने चुनाव कराया क्यों? चुनाव में कितने उम्मीदवार मैदान में उतरे? कितने लोगों ने वोट दिए. किम जोंग उन को कितने वोट मिले? क्या किम जोंग उन के खिलाफ भी लोगों ने वोट डाले? वोटों की गिनती किसने की? नतीजे का ऐलान किसने किया? चुनाव का संचालन करने वाले कौन लोग थे? तो बस इंतज़ार कीजिए. आपको सिलसिलेवार एक एक सवाल का जवाब मिलेगा.

10 मार्च 2019 यानी रविवार के दिन उत्तर कोरिया में कुल 687 सीटों के लिए चुनाव हुए. प्योंगयांग में चुनाव के दिन की तस्वीरें सामने आई. जब कोरियाई लोग चुनाव को किसी उत्सव की तरह मनाते हुए नज़र आए. इस चुनाव में नॉर्थ कोरिया के मार्शल किम जोंग उन ने भी हिस्सा लिया. मगर इस जश्न से पहले उत्तर कोरिया में मौजूद एक-एक शख्स ने घर से निकलकर वोट किया. क्योंकि यहां उत्तर कोरिया के हर नागरिक के लिए वोट करना ज़रूरी है.

लाखों की तादाद में वोटर पोलिंग सेंटर में जमा हुए. मगर इस बार का चुनाव हर बार के चुनाव से बिलकुल अलग था. क्योंकि यहां बैलेट पेपर की जगह इस बार सिर्फ ये कार्ड दिया जा रहा था. और इस कार्ड पर सिर्फ एक ही पार्टी का नाम लिखा था वर्कर पार्टी ऑफ कोरिया. इस कार्ड पर लगाने के लिए दो ही मोहर थी. हां.. यानी आप इस पार्टी के समर्थन में हैं और ना. यानी आप इस पार्टी के खिलाफ है. इतने दिन में आप समझ तो गए ही होंगे कि उत्तर कोरिया में किम जोंग उन को ना कहने का मतलब क्या है.

दुनिया का ये इकलौता ऐसा चुनाव था जिसमें कोई विरोधी उम्मीदवार था ही नहीं. कायदे से तो इसे चुनाव ही नहीं कहना चाहिए. क्योंकि इसमें मतदाता को बैलेट पर उम्मीदवार का चुनाव करने ही नहीं दिया गया. बल्कि असल में तो उन्हें एक वारंट दिया गया. जिस पर हां का मतलब ज़िंदगी और ना का मतलब मौत था.

करीब साढे 4 महीने बाद इस चुनाव का नतीजा अब आया है. देश की सभी 687 सीटों पर वर्कर पार्टी ऑफ कोरिया के उम्मीदवारों को निर्विरोध जीत मिली. भारत में जिस तरह देश के लिए लोकसभा और राज्यों के लिए विधानसभा चुनाव होते हैं, वैसे ही वहां सुप्रीम पीपुल एसेंबली और लोकल पीपुल एसेंबली के लिए चुनाव होते हैं. हर 4 साल में सुप्रीम एसेंबली के लिए और हर 5 साल में लोकल एसेंबली के लिए यहां चुनाव कराया जाता है. इस साल मार्च में हुआ ये चुनाव सुप्रीम पीपुल एसेंबली के लिए था.

उत्तर कोरिया में हुए इस चुनाव में 99.98 फीसदी वोटिंग हुई. जिन दशमलव 02 फीसदी लोगों ने वोट नहीं दिया वो सभी दरअसल देश से बाहर थे. जो लोग बीमार थे या बुज़ुर्ग थे उनसे मोबाइल वोटिंग के ज़रिए वोट करवाई गई. यही वजह है कि पिछली बार के मुकाबले इस बार उत्तर कोरिया की वोटिंग पर्सेंटेज में सुधार हुआ. पिछली बार चुनाव में उत्तर कोरिया में 99.97 फीसदी वोट डाले गए थे. इसका मतलब है कि .01 पर्सेंट वोटिंग में सुधार हुआ है. दोनों बार 99 प्रतिशत वोट पड़े थे. उत्तर कोरिया ने पूरी दुनिया में वोटिंग पर्सेंट का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वो भी .01 पर्सेंट से.

उत्तर कोरिया में वोटिंग का ये पर्सेंटेज इस लिए हैरान नहीं कर रहा है क्योंकि जिस देश में अपने मन की हेयर स्टाइल तक रखने की आज़ादी ना हो. वहां अपना मनपसंद उम्मीदवार चुनने की बात करना भी बेमानी है. हर बार की तरह ख़ुद किम जोंग उन ने भी वोट डाला. साउथ हैम्योंग के बूथ नंबर 201 पर किम ने वोट डालकर अपने देशवासियों को भी वोटिंग में हिस्सा लेने का आदेश दिया. ये उसी आदेश का नतीजा है कि चुनाव में 99.98 पर्सेंट वोटिंग हुई. किम जोंग उन वर्कर पार्टी के हेड हैं. और आर्म्ड फोर्सेज़ के सुप्रीम हेड भी.

वैसे कहने को उत्तर कोरिया को तो किम जोंग उन ‘डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया’ कहता है. जो कहने सुनने के लिए तो ठीक है, मगर यहां की डेमोक्रेसी का हाल दुनिया देख रही है. रस्मअदायगी के लिए ही सही मगर उत्तर कोरिया के इलेक्शन कमीशन ने करीब साढे चार महीने बाद ये ऐलान किया कि वर्कर पार्टी ऑफ कोरिया ने 10 मार्च को हुए चुनाव में सभी सीटें जीत लीं है और इस पार्टी के हक में 99.98 पर्सेंट वोटिंग हुई.

आपको बता दें कि नार्थ कोरिया में कुल कितने वोटर हैं, इसकी ठीक ठीक जानकारी किसी भी विदेशी एजेंसी के पास नहीं है. लेकिन अगर देश की कुल ढाई करोड़ की आबादी में 2 करोड़ भी वोटर मान लिए जाएं. तो उनमें से एक करोड़ सत्तानवे लाख छियान्नबे हज़ार लोगों ने किम की पार्टी को वोट किया. जिन्होंने नहीं किया वो सिर्फ वो लोग थे जो देश से बाहर थे. नार्थ कोरिया में हर 17 साल के इंसान को वोट करने का अधिकार है.

कुल मिलाकर इस चुनावी नतीजे के बाद अगले चार और साल यानी 2023 तक उत्तर कोरिया के मार्शल किम जोंग उन को फिर से देश चलाने का लोकतांत्रिक अधिकार मिल गया है. हालांकि ना भी मिलता तो वो तानाशाही अंदाज़ में देश चला ही लेता. क्योंकि मुल्क की आज़ादी से अब तक इस मुल्क में सिर्फ किम खानदान का राज रहा है. और अब तो मार्शल किम जोंग उन की सल्तनत पर छाया अमेरिकी खतरा भी तकरीबन खत्म हो चुका है. जो ट्रंप और किम एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू थे वो आज एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं.

इसमें शक नहीं कि दुनिया के दबाव में उत्तर कोरिया में हुआ ये चनाव महज़ एक रस्मअदायगी था. मगर जिस तरह यहां ये एक तरफा चुनाव हुआ वो ज़रूर दुनियाभर चर्चा का विषय बना हुआ है. हालांकि इससे पहले जो चुनाव हुए थे उसमें वर्कर पार्टी ऑफ कोरिया के अलावा भी दूसरी पार्टियों ने हिस्सा लिया था. मगर इस बार उन्हें चुनाव लड़ने के लिए किम की इजाज़त नहीं मिली. क्या पता अगर इजाजत मिल गई होती तो पोलिंग बूथ पर कुछ अलग ही सीन नजर आता.

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