Vrindavan Holi 2019: गुलाल और पानी से बांके-बिहारी मंदिर के पुजारी करते हैं होली की शुरुआत

इंडिया के अलग-अलग हिस्सों में होली का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और बड़ी ही बेसब्री से लोगों को इसका इतंजार रहता है। होली जहां दूसरे शहरों में रंगों और पानी से खेली जाती है वहीं मथुरा और वृंदावन में गुलाल और पानी के अलावा फूल, लड्डूओं और लाठियों के साथ इस त्योहारों को मनाया जाता है।

वृंदावन की होली

वृंदावन की होली बहुत ही खास होती है क्योंकि ये वो जगह है जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीता। वैसे तो यहां हर एक जगह होली का हुडदंग देखने को मिलता है लेकिन बांके-बिहारी मंदिर जैसी होली कहीं देखने को नहीं मिलेगी। नेचुरल रंगों जिसे गुलाल कहा जाता है और पानी के साथ होली खेलने की परंपरा है। मंदिर के पुजारी, जिन्हें गोस्वामी कहा जाता है वो बाल्टी और पिचकारी से भक्तों पर रंगों की बारिश करते हैं। श्रीकृष्ण के भजन पर झूमते-नाचते लोग और गुलाब की खुशबू से पूरा माहौल सरोबार हो जाता है।

वृंदावन में होली के दिन भांग और ठंडई भी पिया जाता है। एक-दूसरे को मिठाई बांटने और कृष्ण भजन पर नाचने-गाने का भी रिवाज है।

कहां स्थित है बांके बिहारी मंदिर

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है बांके बिहारी मंदिर। ये मंदिर श्री राधा वल्लभ मंदिर के नज़दीक स्थित है। वृंदावन में ठाकुर जी के 7 जाने-माने मंदिरों श्री राधावल्लभ जी, श्री गोविंद देव जी, श्री राधा रमण जी, श्री राधा माधव जी, श्री मदन मोहन जी और श्री गोपीनाथ जी में से एक है।

बांके बिहारी मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजों ने 1921 में किया था। उनके भजन-कीर्तन से प्रसन्न होकर यहं बांकेबिहारी जी प्रकट हुए थे। इनके अराध्यदेव सांवली-सलोनी सूरत वाले बांकेबिहारी जी थे। निकुंज वन में स्वामी हरिदास जी को बिहारी जी की मूर्ति निकालने का सपना आया। तब उनकी आज्ञानुसार सांवली छवि वाले श्रीविग्रह को धरा की गोद से बाहर निकाला गया।

वसंत ऋतु का आगमन

सर्दियों के मौसम जा रहा होता है और वसंत ऋतु का आगमन हो रहा होता है। जिसके चलते लोगों में अलग ही उत्साव और उमंग का माहौल होता है। जिसे लोग मिलजुल, प्यार और रंगों के साथ अपनी खुशियों को जाहिर करते हैं। 

इसके अलावा होली, बुराई पर अच्छाई की जीत का भी पर्व है। 

बुराई पर अच्छाई की विजय 

राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका का सहारा लिया था। क्योंकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे और राजा हिरण्यकश्यप को ये बिल्कुल स्वीकार नहीं था। वो चाहता था कि उनका पुत्र उसे ही भगवान मानकर उसकी पूजा करें जो प्रह्लाद को स्वीकार्य नहीं था। इसी बात से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वो उसे लेकर आग के ऊपर बैठ जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाएगा। क्योंकि होलिका को वरदान मिला था कि अग्नि उसे कभी जला नहीं सकती लेकिन वो ये भूल गई थी कि ये वरदान सिर्फ तभी काम करेगा जब वो अकेले होगी। यहां वो प्रह्लाद के साथ थी तो भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचा लिया और होलिका उस अग्नि में जलकर राख हो गई। इसलिए होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है। 

राधा को अपने रंग में रंगने के लिए कृष्ण खेलते थे होली

श्रीकृष्ण जब छोटे थे वो एक राक्षस ने उन्हें विष पिया दिला था जिससे उनका रंग सांवला हो गया। राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला अक्सर इसकी शिकायत वो मां यशोदा से किया करते थे। राधा को अपने रंग में रंगने के लिए कृष्ण ने उनके ऊपर बहुत सारे कलर्स डाल दिए। तभी से एक-दूसरे पर रंग फेंकने की ये परंपरा होली के रूप में मनाई जाने लगी। 

 

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