गढ़मुक्तेश्वर के पहाड़ जो आपको बुलाएंगे बार-बार

भागमभाग भरी जीवनशैली में मन को सुकून पहुंचाने के लिए पहाड़ी यात्रा से बेहतर भला और क्या हो सकता है। दिल्ली के पॉल्यूशन और शोरशराबेस उकता कर ज्यादतर लोग पहाड़ों की तरफ निकल जाते हैं। एकदम से बना घूमने-फिरने का प्लान कभी एक्साइटिंग होता है तो कभी सिरदर्द। लेकिन अगर आप उन लोगों में शामिल हैं जो हर वीकेंड निकल जाते हैं एक नई जगह घूमने तो अपने बैग में दो-चार जोड़ी कपड़े और बाकी जरूरी सामान हमेशा तैयार रखें।

सफर की शुरूआत

गढ़मुक्तेशवर के सफर दिल्ली से निकलते ही बाबूगढ़ कैंट में रोड साइड ढाबों में चाय और परांठे का नाश्ता सफर का मज़ा दोगुना कर देगा। साथ ही सुबह-सुबह ट्रैफिक से भी बचे रहते हैं और सही समय पर यहां पहुंच भी जाएंगे। पहाड़ी रास्तों पर अंधेरा घिरने के बाद ड्राइव करना जोखिम भरा होता है। तो समय न गंवाते हुए मैदानी रास्तों को सुबह-सुबह पार करना आसान होता है और कुछ ही समय बाद आप काठगोदाम पहुंच जाएंगे। यहां पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो उठेगा क्योंकि यहां से पहाड़ों की झलक मिलने लगती है और मौसम बदल जाता है। ट्रैकिंग के मकसद से जा रहे हैं तो काठगोदाम में ही हल्का-फुल्का खाकर आगे बढ़े। भीमताल-भवाली होते हुए रास्ते भर प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे अभिभूत करते हैं। कहीं जंगल तो कहीं धुंध की चादर, कहीं मनमौजी नाले तो कहीं भेड़-बकरियों के रेवड़, घास का गठ्ठर करीने से पीठे पर लादे पहाड़ी औरतें तो चाय की दुकानों पर रंगीन टोपियों में सजे बतियाते पुरूष...। स्कूली बच्चों का जोश विशाल पहाड़ों की तरह रास्ते भर साथ रहता है। सेल्फी के प्रलोभन से ये भी दूर नहीं हैं।

लुभावना सूर्यास्त

मीठी सी थकान महसूस होगी लेकिन उसके एहसास को नज़रअंदाज करेंगे तभी नज़ारों का लुत्फ उठा पाएंगे। पहाड़ों पर दोपहर बीतते ही सांझ का अंधेरा पसरने लगता है। गर्मागर्म चाय-पकौड़े का स्वाद इस समय कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। शरीर को थोड़ा आराम दें फिर पहाड़ के अनदेखे नज रहस्यमयी रास्तों की ओर बढ़ें। डूबते सूरज की लाली आकाश को सुंदर ताने-बाने से ढकती है। इस खूबसूरत सूर्यास्त को कैमरे में कैद करने का प्रभोलन छोड़ना तो किसी के भी बस की बात नहीं। शाम घिरते ही नाड़ों में वापस आने वाले पक्षियों का कलरव कानों में मधुर संगीत की तरह बजने लगता है।

खुशगवार मौसम में यात्रा की थकान उतारने के लिए यहां की हैंडमेड चॉकलेट और पहाड़ी कैफे की कॉफी से अच्छा कुछ नहीं। जुगनुओं की कमी पूरी करती पेड़ों पर चमकती फेरी लाइट्स, आसमान में चमकती बिजली बहुत ही खूबसूरत अहसास देती है।

प्राचीन शिव मंदिर

गढ़मुक्तेशवर में एक प्राचीन शिव मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां एक राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था। शिव जी और राक्षस के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब राक्षस को लगा कि वह हार जाएगा तो उसने भगवान शिव से माफी मांगी और भगवान ने उसे मुक्त कर दिया। इस मंदिर को मुक्तेश्वर नाम दिया गया। इस बारे में कई कहानियां हैं। एक कहानी यह भी है कि पांडव यहां हिमालय प्रवास के दौरान आए थे। यहां से नीचे घाटी का दृश्य बहुत सुंदर दिखता है। यह जगह आध्यात्मिक साधना का केंद्र भी है मगर यहां के पुजारी आम पुजारियों से अलग हैं। कोई प्रलोभन नहीं, चढ़ावे की लालसा नहीं दिखाई देगी। भक्ति में लीन पुजारियों को देख सिर झुक जाता है।

चौली की जाली

मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर चौली की जाली है, जहां निस्संतान दंपती संतान की मन्नत मांगने जाते हैं। यहां इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट भी देखने लायक जगह है। जहां पशुपालन संबंधी परीक्षण किए जाते हैं। यह जगह काफी ऊंचाई पर स्थित है, यहां से त्रिशूल और नंदा देवी की धवल चोटियां दिखाई देती हैं। पास में ही एक गोट फॉर्म भी है जहां बकरियां खाती-पीती और लड़ती दिख जाती हैं।

झरना और भालूगढ़

मुक्तेश्वर से करीब सात किमी दूर है भालूगढ़ वॉटर फॉल। जिस जगह से ट्रैकिंग शुरू होती है वहां से पथरीली चट्टानों को पारकर करीब एक घंटे या उससे कुछ कम समय में वॉटर फॉल के पास पहुंचा जा सकता है। यहां दिखने वाले भालुओं की वजह से इस जगह का नाम भालूगढ़ पड़ा करीब 60 फीट की ऊंचाई से गिरते झरने, पक्षियों, रंगबिरंगे पत्थरों और पेड़-पौधों का दीदार होता है यहां। शाम ढ़लने से पहले यहां निकल लेना बेहतर होगा वरना फिर बड़े जानवरों से मुलाकात हो सकती है।

विज्ञान-आध्यात्म का समागम

यहां का डोल आश्रम भी देखने वाला है। आश्रम में कई मंदिरों, आवासीय विद्यालयों के अलावा आध्यात्म का आनंद उठाने आए लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था है। यहां प्राचीन विष्णु मंदिर भी है। रास्ते भर बंदर संयम की परीक्षा लेते हैं। ऊंचे खड़े देवदार आश्वासन देते हैं कि बंदर पाजी हैं लेकिन कुछ करेंगे नहीं। नीचे कुंड है जहां अनंत काल से पानी बह रहा है। माना जाता है कि यहां ब्रम्हा जी ने स्नान किया था। यहां भारत की सबसे बड़ी ऑब्जर्वेटरी आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल आइंसेज़ है। आसपास के ग्रामीण अपने देवता पूजने यहां के मंदिरों में आते हैं। अन्यथा अंदर जाने की अनुमति नहीं है।

कैसे पहुंचे

गढ़मुक्तेशवर पहुंचने का सबसे आसान रास्ता सड़क मार्ग है। दिल्ली से यहां तक के लिए आपको आसानी से बसें मिल जाएंगी। जिसमें आप रात को बैठकर आराम से तड़के सुबह पहुंच सकते हैं। 

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