भारत और तिब्बत के बीच व्यापार मार्ग पर पड़ने वाला छोटा शहर गंगटोक अब काफी बदल चुका है, लेकिन फिर भी इसने अपनी नैसर्गिक सुंदरता को बरकरार रखा है और साथ ही शांत और सुरम्य वातावरण प्रदान करता है..वर्ष 1975 में सुंदर राज्य सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना था। राज्य के उत्तर-पूर्व इलाके में पड़ने वाली सिक्किम की राजधानी गंगटोक तिब्बत के ल्हासा और ब्रिटिश भारत के कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों के बीच के व्यापार मार्ग पर मुख्य ठहराव स्थल हुआ करता था। अब यह तिब्बती बौद्ध संस्कृति का प्रमुख केंद्र हो गया है। सिलीगुड़ी से पर्वत की चोटी पर स्थित गंगटोक शहर पहुंचने में ऊबड़-खाबड़ सड़कों के कारण लगभग चार घंटे का समय लगा, लेकिन विश्र्वास कीजिए यह परेशानी झेलने लायक है, जब आपको पता चलेगा कि शहर में देखने के लिए काफी कुछ है।
क्या है देखने लायक
यहां स्तूप और बौद्ध मठों में जाकर तिब्बती संस्कृति और आध्यात्मिकता को निकट से महसूस किया जा सकता है। वन्य जीवों में रुचि रखने वाले लोग हिमालयन जूलॉजिकल पार्क में जाकर काकड़ या बार्किंग डियर, हिमालयी भालू के अलावा दुर्लभ लाल पांडा की झलक पा सकते हैं। और हां, कंचनजंघा पर्वत की शानदार सुंदरता की प्रशंसा करना नहीं भूले। स्थानीय लोगों के पहनावे को भी आप नहीं भूल सकते। एमजी रोड पर घूमते हुए कोई भी यह महसूस कर सकता है कि यहां के लोगों के पहनने-ओढ़ने का तरीका मुंबई या दिल्ली के लोगों से बेहतर है। और अंतत: शहर की शांतचित्तता पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है।
एमजी रोड
गंगटोक के लोकप्रिय बाजार एमजी रोड से हमने शहर घूमने की शुरुआत की। किसी और हिल स्टेशन में स्थित एमजी रोड या मॉल रोड की तरह यहां की एमजी रोड की पक्की सड़कों पर वाहन पूरी तरह प्रतिबंधित है और सड़कों के बीच में गमलों में लगे पौधों और इसके इर्द-गिर्द लगी बेंचों पर लोग बैठ सकते हैं और आराम कर सकते हैं, लेकिन सबसे अच्छा हमें यहां की सड़कें लगीं, जो कि काफी साफ-सुथरी थी, इसे भारत की सबसे साफ सड़क कहना गलत नहीं होगा।
हनुमान टोक
इसके बाद हनुमान टोक का भ्रमण किया जा सकता है। गंगटोक शहर से 11 किमी. की दूरी पर हनुमान टोक 7200 फीट की ऊंचाई पर है। टोक, जिसका मतलब मंदिर होता है, से कंजनजंघा के मनोरम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है। ऐसा माना जाता है जब भगवान हनुमान हिमालय पर्वत से लक्षमण के लिए संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे, तो इस पहाड़ पर रूककर थोड़ी देर के लिए विश्राम किए थे। यह मंदिर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की इच्छा पूरी करने के लिए जाना जाता है। जैसे ही हम इस स्थान पर पहुंचे, दूसरे पर्यटक स्थलों की तरह यहां भी फोटोग्राफरों ने हमें घेर लिया। रंग-बिरंगी झंडियां और मंदिर के चारों ओर देवदार के पेड़ इस स्थल को काफी मनोरम बना रहे थे।
सोंगमो झील
हमारा अगला पड़ाव शांत और सुंदर सोंगमो झील था, जिसे चांगू झील के नाम से भी जाना जाता है। 12,400 फीट की ऊंचाई पर बर्फीले पर्वतों से घिरे इस झील के स्वच्छ जल में नीले आसमान का प्रतिबिंब आसानी से देखा जा सकता है। इस खूबसूरत नजारे को देखने के लिए यह यात्रा की जा सकती है। वहां कई याक के मालिक हमें याक की सवारी करने के लिए बुला रहे थे, लेकिन हमारे पास समय की कमी थी और हमें समय से होटल पहुंचकर कुछ गर्म जैसे तिब्बती नूडल सूप थुपका आजमना चाह रहे थे।
मठ
गंगटोक जाकर मठ की यात्रा करना भूला नहीं जा सकता। इसलिए हमारा अगला पड़ाव रुमटेक और रंका जैसे मठों का दौरा करना था। गंगटोक से 23 किमी. की दूरी पर मनमोहक स्थल पर रूमटेक मठ स्थित है। ये मठ बौद्ध धर्म के कग्यु मत से संबंधित है, जिसका जन्म तिब्बत में 12वीं सदी में हुआ था। इस मठ की वास्तुकला दुनिया की बेहतरीन वास्तुकलाओं में से एक है और तिब्बत के सुरफू स्थित मूल मठ की वास्तुकला से मिलती-जुलती है। मठ परिसर में प्रवेश करने के साथ ही इसके प्रांगण में बौद्ध भिक्षुओं के निवासों को देखा जा सकता है। मुख्य द्वार पर युवा दलाई लामा की तस्वीर और भगवान गणेश की पेंटिंग सबसे ध्यान आकर्षित करने वाली थी, जो कि बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म और संस्कृत से जोड़ने का काम कर रही थी।
नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान
गंगटोक से केवल दो किमी. की दूरी पर देवराली में नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान स्थित है। यह संस्थान तिब्बती भाषा और संस्कृति में शोध के लिए पूरे विश्र्व में प्रसिद्ध है। इसमें एक संग्रहालय, समृद्ध संग्रहों से युक्त तिब्बती पुस्तकालय और तिब्बत और हिमालय के बारे में संदर्भ केंद्र भी है। इसके अलावा, यह संस्थान भोजपत्र, ओक और चंपा के पेड़ों के छोटे से जंगल के बीच अद्भुत शांत माहौल में स्थित है।
कैसे पहुंचें
पाक्योंग एयरपोर्ट सिक्किम का पहला एयरपोर्ट है, जो राजधानी गंगटोक से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है। अगर सड़क मार्ग से जाना है, तो दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी और कलिमपोंग शहरों से गंगटोक अच्छी तरह जुड़ा है। नजदीकी स्थानों जैसे सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, कलीमपोंग और करसेयोंग से गंगटोक के लिए बस पकड़ सकते हैं। ट्रेन से जाते हैं, तो गंगटोक जाने के लिए मुख्य रेलवे स्टेशन न्यू जलपाइगुड़ी है जो शहर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्टेशन से देश के अन्य भागों के लिए बड़ी संख्या में ट्रेनें चलती हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और कोच्चि से बड़ी संख्या में ट्रेन उपलब्ध हैं। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आप गंगटोक के लिए कैब ले सकते हैं।
फरवरी खत्म होते ही मौसम सुहावना होने लगता है। इस मौसम में घूमने-फिरने का अपना अलग ही मजा होता है। बीच हो या हिल स्टेशन हर एक जगह का अलग रोमांच होता है। लेकिन अगर आप सफर में बहुत ज्यादा टाइम नहीं गवाना चाहते तो दिल्ली के आसपास बसी इन जगहों पर डालें एक नजर। जहां मिलेगा एडवेंचर का भरपूर मौका।
सर्दियों का मौसम वैसे तो अच्छा लगता है लेकिन इस समय घूमने का भी एक अलग ही आनंद होता है. जी हाँ, इन दिनों अगर घूमने को कह दिया जाए तो उसके लिए कोई मना नहीं करता क्योंकि मौसम बहुत आकर्षक होता है. ऐसे में आज हम आपको उन तीन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ ठहरने का खर्च और हवाई यात्रा का खर्च बहुत कम है. केवल इतना ही नहीं, इन जगहों पर होने वाली ऐक्टिविटी के बारे में भी जान लीजिए जिसे करने में आपको खूब मजा आएगा. आइए बताते हैं आपको आपके लिए विंटर वेकशन के लिए बेस्ट जगह.
12वीं शताब्दी के अंकोरवाट मंदिर को चूना पत्थर की विशाल चट्टानों से कुछ ही दशकों में बना लिया गया था। डेढ़ टन से ज्यादा वजन वाली ये चट्टानें बहुत दूर से लाई जाती थीं। सैकड़ों किलोमीटर दूर से विशाल चट्टानों को लाना तब असंभव सा था। तत्कालीन हिंदू राजा ने मंदिर के लिए करीब स्थित माउंट कुलेन से चट्टानें लाने में भूमिगत नहरों की मदद ली। नावों में लादकरक ये चट्टानें पहुंचाई गई।
यह तो हम सभी जानते है कि नव वर्ष की शुरूआत हो चुकी है. ऐसे में अपने परिवार और दोस्तों के साथ बाहर घूमने फिरने जाने का मन तो हर किसी का होता है.अगर समय की कमी के चलते 31 दिसंबर की रात पार्टी नहीं कर पाए हैं तो कोई बात नहीं. दिल्ली में बहुत सी ऐसी शानदार जगहें हैं जहां पर परिवार और दोस्तों के साथ सैर सपाटे के लिए जाना अच्छा लगेगा. तो चलिए जानें ऐसी ही कुछ खूबसूरत जगहों के बारे में जहां पर नए साल के मौके पर घूमने के लिए जाया जा सकता है. दिल्ली और दिल्ली के आसपास कई ऐसी जगहें हैं, जहां हरियाली के बीच आप अपनों के साथ पिकनिक मनाने जा सकते हैं. इन जगहों पर जाने के लिए किसी विेशेष अवसर या खास दिन की जरूरत नहीं, बल्कि आप वीकेंड पर भी दोस्तों या परिवार के साथ जा सकते हैं.
मॉनसून में घूमने की प्लानिंग करना थोड़ा रिस्की होता है लेकिन इंडिया में कुछ जगहें ऐसी हैं जहां की खूबसूरती मॉनसून में अपने चरम पर होती है। ऐसी ही जगहों में शामि है पुणे, जिसके आसपास बिखरी है बेशुमार खूबसूरती। वीकेंड में दोस्तों के साथ मस्ती करना चाह रहे हैं या सोलो ट्रिप पर जाना हो, बिंदास होकर इन जगहों का बना सकते हैं प्लान।
घूमने का मतलब सिर्फ डेस्टिनेशन कवर करना नहीं होता बल्कि उस जगह के खानपान, कल्चर और अलग-अलग तरह के एडवेंचर से भी रूबरू होना होता है। ग्रूप और सोलो जैसे ही रोड ट्रिप का भी अपना अलग ही मज़ा होता है और वो भी जब आपकी सवारी साइकिल हो। जी हां, साइकिलिंग करते हुए आराम से उस जगह की हर एक चीज़ के बारे में जानना। हालांकि, इसके साथ डेस्टिनेशन तक पहुंचना इतना आसान नहीं होता लेकिन एडवेंचर के शौकीन इसे बहुत एन्जॉय करते हैं। तो अगर आप भी उनमें से एक है तो इंडिया में साइकिलिंग के लिए कौन से जगहें बेस्ट हैं, इसके बारे में जानेंगे।
इंडिया में सर्फिंग का क्रेज रीवर रॉफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइविंग और बंजी-जंपिग जितना नहीं, बाहर से आने वाले टूरिस्ट्स के बीच ये एडवेंचर बहुत पॉप्युलर है। लेकिन अब इंडिया में भी धीरे-धीरे लोग इस एडवेंचर को न सिर्फ ट्राय कर रहे हैं बल्कि एन्जॉय भी। तो इस एडवेंचर को एन्जॉय करने के लिए इंडिया में कौन सी जगहें हैं बेस्ट, जानते हैं यहां।
बिहू की शुरूआत होते ही असम का नज़ारा देखने लायक होता है। चारों ओर खेतों में लहलहाती फसल, झूमते-नाचते लोग और तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोज़न इसकी रौनक में चार चांद लगाने का काम करते हैं। असम में रहने वाले ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं इसलिए यहां इस त्योहार का खासा महत्व है। कोई भी फेस्टिवल वहां के पारंपरिक खान-पान के बिना अधूरा है। खानपान के साथ ही लोकगीत और नृत्य का तालमेल बिहू को बनाता है लोकप्रिय। फेस्टिवल में बनाए जाने वाले अलग-अलग तरह के पकवानों में चावल, नारियल, गुड़, तिल और दूध का खासतौर से इस्तेमाल किया जाता है। तो आइए जानते हैं इन व्यंजनों के बारे में...
शक्ति का अवतार मां दुर्गा को ब्रम्हांड के रक्षक के रूप में जाना जाता है। शक्ति और मनोकामना की पूर्ति के लिए मां दुर्गा को पूजा जाता है खासतौर से नवरात्रि के दौरान। चैत्र हो या शरद नवरात्रि, दोनों ही हिंदुओं के लिए बहुत मायने रखता है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु नौ दिनों का उपवास रखते हैं और देवी की पूजा-अराधना करते हैं। भारत में अलग-अलग जगहों पर मां दुर्गा के अनेक मंदिर स्थित हैं जिनकी अलग मान्यताएं और कहानियां हैं। कहते हैं इन जगहों के दर्शन मात्र से बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। तो आज इन्हीं मंदिरों के बारे में जानेंगे।
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