क्रिसमस पर वेटिकन की यादगार सैर

यूरोप की यात्रा का पहला दिन था वह। रोम में 10 सितंबर की सुबह थी और वेटिकन सिटी जाने का प्लान था। सुबह सवेरे ही पहुंचना था वेटिकन सिटी के द्वार पर, क्योंकि जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है टूरिस्ट ग्रुप्स की लाइनों में इजाफा होने लगता है। टूर डायरेक्टर का कड़ा निर्देश था कि कोई लेट न करे और वेटिकन देखने का इतना चार्म कि चालीस से ज्यादा सैलानियों का समूह निर्धारित समय पर बस में सवार था। मन में सवाल बहुत थे कि कैसा होगा वेटिकन सिटी?

वेटिकन सिटी की खूबसूरती

दुनिया का सबसे छोटा देश, जो केवल 108 एकड़ में बसा है। जहां मात्र हजार के करीब लोग रहते हैं। जहां के अपने सिक्के, अपना डाक विभाग, रेडियो और अपनी सेना है। यहां कोई जन्म नहीं लेता, जब कोई पोप बनता है तो यहां की जनसंख्या बढ़ती है। माना जाता है कि सेंट पीटर को वेटिकन पहाड़ी पर सूली पर चढ़ाया गया और बेसिलिका की पहाड़ी पर दफनाया गया। यह तो पढ़ा था कि रोम के भीतर मौजूद इस अनोखे देश में धर्म गुरु पोप का निवास स्थान है और रोमन कैथोलिक चर्च ने इसे पूरे विश्र्व में अनोखा बना दिया है, लेकिन यहां कलाकृतियों का इतना भंडार देखने को मिलेगा, कल्पना से भी दूर था। वेटिकन म्यूजियम देखने के लिए हमें अलग से 60 यूरो देने थे। इसे देखना टूर पैकेज में शामिल नहीं था लेकिन रोम जाकर भी वेटिकन नहीं जाना यूरोप का एक महत्वपूर्ण स्थान मिस कर देने जैसा था। खैर, रोम की टाईबर नदी के किनारे बसे वेटिकन सिटी को देखने जाना ही था और इस ऑप्शनल विजिट के लिए परहेड 60 यूरो देने ही थे। टूरिस्ट कोच के पहुंचने पर लोकल गाइड फेबिलियो साथ हो लीं। इतालवी एक्सेंट में उनकी अंग्रेजी कुछ समझ आ रही थी कुछ नहीं। वहां कई टूरिस्ट ग्रुप हमसे पहले ही पहुंचे थे। इनके लोकल गाइड अपनी पहचान के लिए झंडा या छतरी लिए थे। इन्हीं के पीछे हमारे ग्रुप ने भी खड़े हाने की जगह बना ली।

सोमवार को वेटिकन जाना काफी मुश्किल भरा लगा क्योंकि एक दिन की छुट्टी के बाद भीड़ काफी बढ़ जाती है। किसी किले की दीवारों जैसी थीं यहां की ऊंची दीवारें। सितंबर के महीने में रोम की गर्मी लगभग झुलसा देने वाली थी। पहले दिन हुई टैनिंग कई महीनों तक बरकरार रही। सूरज तेज था लेकिन जोश भी कम नहीं था। लंबे इंतजार के बाद सुरक्षा जांच की हर प्रक्रिया से गुजरते, जब हम वेटिकन म्यूजियम में दाखिल हुए तो आंखें विस्मित रह गईं। गाइड ने मोटे तौर पर जानकारी दी कि हमें कैसे, कहां जाना है। वेटिकन म्यूजियम में दीवारों पर बनी पेंटिंग्स, मूर्तियां और अन्य इंस्टॉलेशंस अविस्मरणीय हैं। निःशब्द सी मैं हर कला को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लेना चाहती थी लेकिन यह असंभव था। कहते हैं कि सेंट पीटर बैसिलिका को पांच सौ साल भी ज्यादा समय तक कलाकार सजाते रहे। यहां बनी एक पेंटिंग को देखने में एक मिनट लगाएं तो पूरा म्यूजियम घूमने में चार साल लग जाएंगे।

म्यूजियम है बहुत ही खास

हर पेंटिंग एक कहानी कहती हुई चलती है। खूबसूरत ऊंचे डोम नजर में बस गए थे। काफी समय तो ऊपर देखते हुए ही गुजरा। कला के एक-एक नमूने को देखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे कि हम मुख्य चर्च में दाखिल हुए। यहां की छत माइकल एंजेलो की पेंटिंग्स से सुशोभित है। टूर गाइड बता रही थीं कि माइकल एंजेलो ने 84 फीट की इस हाइट पर ऊपर देखते हुए पेंटिंग्स बनाईं जिससे आखिर में उनकी आंखें चली गईं थी। यह चर्च यूनेस्को द्वारा घोषित धरोहर है। हर साल 50 लाख से ज्यादा लोग इसे देखने आते हैं। वैसे तो 44 हेक्टेयर में बसा यह पूरा देश ही वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। चर्च के अंदर फादर प्रेयर कराते हैं। यहां फोटो खींचने की सख्त मनाही है। चर्च से बाहर आने पर खुले में वेटिकन सिटी का रूप और भी मनमोहक था लेकिन तेज धूप मजा किरकिरा कर रही थी।

भवनों का आर्किटेक्चर

जो रोम की कला व संस्कृति को बयान कर रहा था। अब हम सेंट पीटर स्क्वायर में थे। हजारों की तादाद में लगी कुर्सियां बता रहीं थीं कि यहां पोप अपने अनुयाईयों को संबोधित करते हैं। एक तरफ लंबे ऊंचे गेट पर नारंगी और नीली धरियों की वर्दी में गार्ड तैनात थे। बताया गया कि इसके भीतर पोप का निवास है। वह खिड़की भी देखी जहां से पोप अपने फॉलोअर्स को आशीर्वाद देने के लिए आते हैं। वेटिकन की अपनी रेलवे लाइन है, हेलिकॉप्टर है लेकिन एयरपोर्ट नहीं है। नजदीकी एयरपोर्ट रोम का है। यहां आधुनिक संचार साधन, इंटरनेट,टेलीफोन,पोस्टल सिस्टम, टेलीविज़न आदि भी हैं। वेटिकन सिटी परिसर में ही वेटिकन गार्डेन भी है जो रंग-बिरंगे फूलों, अदूभुत मूर्तियों और फव्वारों से सजा है। भीड़-भाड़ वाले सेंट पीटर स्क्वायर में जेब कटने और पास से सामान खिसक जाने की गुंजाइश पूरी है। रोम में भी जेबकतरों से बचने की सलाह हर जगह दी जाती है। तेज गर्मी के बीच किसी तरह से छाया ढूंढ़ कर हमने थोड़ी राहत की सांस ली। लेकिन दुनिया की नायाब जगहों को देखने के लिए हर कष्ट मंजूर था। पोप को देखने, उन्हें सुनने का सपना तो पूरा नहीं हो पाया लेकिन यूरोप यात्रा का ऐसा आगाज रोमांचक था। क्रिसमस आने को है और लोगों को पोप के संदेश का इंतजार होगा कि क्या बोलेंगे पोप इस बार?

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