उत्तराखंड के कुमाऊं की पहाडि़यों में घूमने के लिए वैसे तो अप्रैल और मई का महीना अच्छा माना जाता है, क्योंकि उस दौरान उत्तर भारत के ज्यादातर जगहों पर लू चलती है, लेकिन अल्मोड़ा और इसके आस-पास की ज्यादातर जगहों का मौसम सुहाना होता है। ऐसे में घूमने का समय अक्टूबर का महीना भी परफेक्ट है। अक्टूबर माह का आकर्षण है इस क्षेत्र में होने वाली संगीतमय रामलीला।
उत्तर भारत में तीन सांगीतिक रामलीलाएं होती रही हैं, जिनमें पूरी या अधिकांश रामलीला गाकर ही खेली जाती है– राजस्थान में कोटा क्षेत्र के बारां जिले के पाटूंदा गांव में होने वाली हाड़ौती भाषा की रामलीला, जो मार्च महीने के आसपास रामनवमी के अवसर पर खेली जाती है। दूसरी रोहतक और उसके आसपास के क्षेत्रों में खेली जाने वाली सरदार यशवंत सिंह वर्मा टोहानवी लिखित हरियाणवी भाषा की सांग शैली की रामलीला, जिसके कुछ अंश मात्र ही अब हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में खेली जाने वाली रामलीलाओं में प्रयोग होते हैं और तीसरी है कुमाऊं क्षेत्र की रामलीला। (पूर्वी भारत में उड़ीसा के कंधमाल जिले के बिसीपाड़ा गांव की लंकापोड़ी जात्रा एक और सांगीतिक रामलीला है।) इन सभी रामलीलाओं का आधार तो संत तुलसीदास की रामचरितमानस ही है, लेकिन सभी रामलीलाओं में स्थानीय तत्वों को लेकर नई रचनाएं कर ली गई हैं।
कुमाऊं की रामलीला
यहां की रामलीला अब से लगभग डेढ़ सौ साल पहले प्रारंभ हुई थी। यूनेस्को ने इस रामलीला को दुनिया का सबसे लंबा ऑपेरा घोषित करके इसे विश्र्व सांस्कृतिक दाय सूची अर्थात वर्ल्ड कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोकमानस में रची-बसी रही यह रामलीला विशुद्ध मौखिक परंपरा पर आधारित है। गाई जाने वाली रामलीला होने के कारण संगीत इसका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है। संगीत में प्रधानत: हारमोनियम और ढोलक या तबले का ही प्रयोग होता रहा है। रामलीला में अभिनय से ज्यादा जोर गायन पर रहता है।
रामलीला मतलब संगीतमय उत्सव
इसमें खासतौर से उन्हीं कलाकारों को अभिनेता के तौर पर लिया जाता है, जिन्हें गायन और संगीत का ज्ञान हो। नि:शब्द रात्रि में जब पहाड़ों की वादियों में कलाकारों के मधुर गायन की आवाज़ गूंजती है, तो दर्शक एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाते हैं। अधिकतर रामलीलाओं में पुरुष ही स्त्री-पात्र भी निभाते रहे हैं, हालांकि अब कहीं-कहीं महिलाओं को भी इसमें शामिल किया जाने लगा है। राम की कथा कहने वाली इस रामलीला की एक दिलचस्प बात यह है कि इसकी शुरुआत हर रोज श्रीकृष्ण की रासलीला से होती है!
कुमाऊं क्षेत्र में इस रामलीला में 'स्वरूप' अर्थात प्रमुख पात्र और अन्य भूमिकाएं छोटी उम्र के लोगों द्वारा ही निभाई जाती हैं, हालांकि दिल्ली, लखनऊ, मुरादाबाद, झांसी इत्यादि क्षेत्रों में बड़ी आयु के लोग ही सभी भूमिकाएं निभाते हैं। वर्तमान में कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में इस रामलीला के खेले जाने के प्रमुख स्थान अल्मोड़ा, बागेश्र्वर, नैनीताल, कालाढूंगी, पिथौरागढ़, देहरादून इत्यादि हैं, हालांकि अल्मोड़ा के लक्ष्मी भंडार उफऱ् हुक्का क्लब की लगभग एक शताब्दी पुरानी रामलीला का आकर्षण अन्य रामलीलाओं से कुछ अलग ही होता है।
इस रामलीला का असली आनंद इसके अभिनेताओं के गायन में है। नौटंकी, नाच, जात्रा, रासलीला इत्यादि के तत्व इसमें शामिल हैं। एक लोकविधा होने के कारण विभिन्न रामलीलाओं में मेकअप, मंच सज्जा, साउंड इत्यादि में नए-नए प्रयोग होते ही रहते हैं, अत: दर्शकों को हर बार कुछ नया देखने को मिल सकता है। जहां अच्छे गायक होंगे, वहां की रामलीला कम सजावट के बावजूद आकर्षक हो जाती है। विभिन्न रसों में डूबे गीतों को जब कलाकार अपनी भरपूर भावप्रवण आवाज़ में गाते हैं, तो श्रोता-दर्शक भावविभोर हुए बिना नहीं रह पाते! प्रमुखत: भीमताली तर्ज में गाई जाने वाली यह रामलीला जहां एक ओर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, वहीं दूसरी ओर इसमें राजस्थान की मांड जैसी लोकगायन शैली के भी तत्व शामिल हैं।
कराची में कुमाऊंनी रामलीला
कुमाऊंनी रामलीला की इस परंपरा की नींव अल्मोड़ा में पड़ी, लेकिन धीरे-धीरे यह देश में अन्य स्थानों पर भी फैल गई। प्रवासी कुमाऊंनियों द्वारा यह रामलीला दिल्ली, लखनऊ, मुरादाबाद, झांसी इत्यादि में खूब खेली जाती रही है और बहुत लोकप्रिय भी रही है। इस रामलीला से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि आज़ादी के पहले यह रामलीला कुमाऊंनी लोगों द्वारा कराची तक में भी खेली जाती रही। कुमाऊं के बाहर भी इसके लोकप्रिय होने का कारण बहुत चौंकाने वाला है। यह रामलीला कुमाऊंनी लेखकों द्वारा लिखी जाने पर भी बृजभाषा में लिखी गई है, जो उत्तर भारत के बड़े हिस्सों में आसानी से समझी जाती है। इस रामलीला ने आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़े रहे कुमाऊं क्षेत्र के विकास में भी अद्भुत योगदान दिया है – दिल्ली तथा उत्तर भारत के अन्य शहरों में रहने वाले कुमाऊंनी लोगों द्वारा हर वर्ष अपने-अपने नगरों में आयोजित की जाने वाली रामलीला से जो आय होती है, उसे वहां की संस्थाएं अपने पैतृक क्षेत्र के गांवों के स्कूलों तथा अन्य सामाजिक संस्थानों के विकास के लिए भेजती रही हैं!
फरवरी खत्म होते ही मौसम सुहावना होने लगता है। इस मौसम में घूमने-फिरने का अपना अलग ही मजा होता है। बीच हो या हिल स्टेशन हर एक जगह का अलग रोमांच होता है। लेकिन अगर आप सफर में बहुत ज्यादा टाइम नहीं गवाना चाहते तो दिल्ली के आसपास बसी इन जगहों पर डालें एक नजर। जहां मिलेगा एडवेंचर का भरपूर मौका।
सर्दियों का मौसम वैसे तो अच्छा लगता है लेकिन इस समय घूमने का भी एक अलग ही आनंद होता है. जी हाँ, इन दिनों अगर घूमने को कह दिया जाए तो उसके लिए कोई मना नहीं करता क्योंकि मौसम बहुत आकर्षक होता है. ऐसे में आज हम आपको उन तीन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ ठहरने का खर्च और हवाई यात्रा का खर्च बहुत कम है. केवल इतना ही नहीं, इन जगहों पर होने वाली ऐक्टिविटी के बारे में भी जान लीजिए जिसे करने में आपको खूब मजा आएगा. आइए बताते हैं आपको आपके लिए विंटर वेकशन के लिए बेस्ट जगह.
12वीं शताब्दी के अंकोरवाट मंदिर को चूना पत्थर की विशाल चट्टानों से कुछ ही दशकों में बना लिया गया था। डेढ़ टन से ज्यादा वजन वाली ये चट्टानें बहुत दूर से लाई जाती थीं। सैकड़ों किलोमीटर दूर से विशाल चट्टानों को लाना तब असंभव सा था। तत्कालीन हिंदू राजा ने मंदिर के लिए करीब स्थित माउंट कुलेन से चट्टानें लाने में भूमिगत नहरों की मदद ली। नावों में लादकरक ये चट्टानें पहुंचाई गई।
यह तो हम सभी जानते है कि नव वर्ष की शुरूआत हो चुकी है. ऐसे में अपने परिवार और दोस्तों के साथ बाहर घूमने फिरने जाने का मन तो हर किसी का होता है.अगर समय की कमी के चलते 31 दिसंबर की रात पार्टी नहीं कर पाए हैं तो कोई बात नहीं. दिल्ली में बहुत सी ऐसी शानदार जगहें हैं जहां पर परिवार और दोस्तों के साथ सैर सपाटे के लिए जाना अच्छा लगेगा. तो चलिए जानें ऐसी ही कुछ खूबसूरत जगहों के बारे में जहां पर नए साल के मौके पर घूमने के लिए जाया जा सकता है. दिल्ली और दिल्ली के आसपास कई ऐसी जगहें हैं, जहां हरियाली के बीच आप अपनों के साथ पिकनिक मनाने जा सकते हैं. इन जगहों पर जाने के लिए किसी विेशेष अवसर या खास दिन की जरूरत नहीं, बल्कि आप वीकेंड पर भी दोस्तों या परिवार के साथ जा सकते हैं.
मॉनसून में घूमने की प्लानिंग करना थोड़ा रिस्की होता है लेकिन इंडिया में कुछ जगहें ऐसी हैं जहां की खूबसूरती मॉनसून में अपने चरम पर होती है। ऐसी ही जगहों में शामि है पुणे, जिसके आसपास बिखरी है बेशुमार खूबसूरती। वीकेंड में दोस्तों के साथ मस्ती करना चाह रहे हैं या सोलो ट्रिप पर जाना हो, बिंदास होकर इन जगहों का बना सकते हैं प्लान।
घूमने का मतलब सिर्फ डेस्टिनेशन कवर करना नहीं होता बल्कि उस जगह के खानपान, कल्चर और अलग-अलग तरह के एडवेंचर से भी रूबरू होना होता है। ग्रूप और सोलो जैसे ही रोड ट्रिप का भी अपना अलग ही मज़ा होता है और वो भी जब आपकी सवारी साइकिल हो। जी हां, साइकिलिंग करते हुए आराम से उस जगह की हर एक चीज़ के बारे में जानना। हालांकि, इसके साथ डेस्टिनेशन तक पहुंचना इतना आसान नहीं होता लेकिन एडवेंचर के शौकीन इसे बहुत एन्जॉय करते हैं। तो अगर आप भी उनमें से एक है तो इंडिया में साइकिलिंग के लिए कौन से जगहें बेस्ट हैं, इसके बारे में जानेंगे।
इंडिया में सर्फिंग का क्रेज रीवर रॉफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग, स्कूबा डाइविंग और बंजी-जंपिग जितना नहीं, बाहर से आने वाले टूरिस्ट्स के बीच ये एडवेंचर बहुत पॉप्युलर है। लेकिन अब इंडिया में भी धीरे-धीरे लोग इस एडवेंचर को न सिर्फ ट्राय कर रहे हैं बल्कि एन्जॉय भी। तो इस एडवेंचर को एन्जॉय करने के लिए इंडिया में कौन सी जगहें हैं बेस्ट, जानते हैं यहां।
बिहू की शुरूआत होते ही असम का नज़ारा देखने लायक होता है। चारों ओर खेतों में लहलहाती फसल, झूमते-नाचते लोग और तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोज़न इसकी रौनक में चार चांद लगाने का काम करते हैं। असम में रहने वाले ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं इसलिए यहां इस त्योहार का खासा महत्व है। कोई भी फेस्टिवल वहां के पारंपरिक खान-पान के बिना अधूरा है। खानपान के साथ ही लोकगीत और नृत्य का तालमेल बिहू को बनाता है लोकप्रिय। फेस्टिवल में बनाए जाने वाले अलग-अलग तरह के पकवानों में चावल, नारियल, गुड़, तिल और दूध का खासतौर से इस्तेमाल किया जाता है। तो आइए जानते हैं इन व्यंजनों के बारे में...
शक्ति का अवतार मां दुर्गा को ब्रम्हांड के रक्षक के रूप में जाना जाता है। शक्ति और मनोकामना की पूर्ति के लिए मां दुर्गा को पूजा जाता है खासतौर से नवरात्रि के दौरान। चैत्र हो या शरद नवरात्रि, दोनों ही हिंदुओं के लिए बहुत मायने रखता है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु नौ दिनों का उपवास रखते हैं और देवी की पूजा-अराधना करते हैं। भारत में अलग-अलग जगहों पर मां दुर्गा के अनेक मंदिर स्थित हैं जिनकी अलग मान्यताएं और कहानियां हैं। कहते हैं इन जगहों के दर्शन मात्र से बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। तो आज इन्हीं मंदिरों के बारे में जानेंगे।
भारत के सबसे करीब स्थित थाईलैंड सालभर सैलानियों से भरा रहता है। खासतौर पर फुकेत यहां आकर्षण का केंद्र है। यह दक्षिण पूर्व एशिया के लोगों के लिए लोकप्रिय स्थान है, जहां का रेतीला समुद्री तट उन्हें आकर्षित करता है।