‘आम्रपाली’ जैसी और कंपनियों के लग सकता बड़ा झटका

नई दिल्ली: अधूरे प्रोजैक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली ग्रुप की सभी 40 कंपनियों और उनके निदेशकों के बैंक अकाऊंट फ्रीज कर दिए हैं। साथ ही इन कंपनियों और उनके निदेशकों की संपत्ति भी अटैच कर दी गई है। यानी अब कोई भी न तो बैंक खातों का इस्तेमाल कर सकेगा और न संपत्ति बेच सकेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद घर का सपना संजोए खरीदारों के मन में घर मिलने की आस जगी है। दूसरी ओर कोर्ट के इस आदेश के बाद यह भी आस जगी है कि रीयल एस्टेट से जुड़ी दूसरी डिफाल्टर कंपनियों के खिलाफ भी ऐसी ही कार्रवाई हो सकती है। अकेले ग्रेटर नोएडा में ही 164 के करीब डिफाल्टर कंपनियां हैं।    
दिल्ली-एन.सी.आर. में आम्रपाली के बिल्डिंग प्रोजैक्ट में 30 हजार से ज्यादा लोगों के पैसे फंसे हैं। बिल्डर ने इन्हें पूरा करने की समय सीमा बताते हुए कोर्ट में हलफनामा दिया था लेकिन उसका पालन नहीं किया। कंपनी को कोर्ट की रजिस्ट्री में 250 करोड़ रुपए जमा कराने को कहा गया लेकिन कंपनी ने ये भी नहीं किया। बन चुकी इमारतों में जरूरी सुविधा देने के वादे भी अधूरे रहे। इसके अलावा कंपनी ने फ्लैट खरीदारों के 2765 करोड़ रुपए दूसरे कामों में लगा दिए। ये पैसे कहां गए, इसको लेकर स्पष्टता नहीं है।

18 जुलाई को कोर्ट ने कंपनी से जुड़े सभी बैंक खातों में 2008 से लेकर अब तक हुए लेन-देन का ब्यौरा मांगा था। कंपनी ने आज बस कुछ निदेशकों के खातों का ब्यौरा दिया। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाया है। यह तो रीयल एस्टेट से जुड़े एक ग्रुप के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। इस ग्रुप के अलावा भी बहुत से ऐसे बिल्डर हैं जो होम बायर्स का पैसा दबाकर बैठे हैं। होम बायर्स बैंकों से लोन लेकर बिल्डर्स को दे चुके हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रैसल के पास सबसे ज्यादा शिकायतें रीयल एस्टेट से जुड़ी कंपनियों के खिलाफ जा रही हैं। यह किसी एक प्रदेश का मामला नहीं है। अकेले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण कुछ साल पहले अपनी वैबसाइट पर 164 डिफाल्टर बिल्डरों की सूची डाल चुका है जिसमें आम्रपाली बिल्डर का नाम एक है। बता दें कि ये बिल्डर निवेशकों से फ्लैट के नाम पर 90 प्रतिशत तक पैसा ले चुके हैं। नामी डिफाल्टर बिल्डरों में आम्रपाली, यूनिटैक, सुपरटैक, पाश्र्वनाथ डिवैल्पर्स, एल्डिको इंफ्रास्ट्रक्चर, ए.टी.एस. आदि कुछ और नाम शामिल हैं। इनके अलावा भी सैंकड़ों डिफाल्टर बिल्डर्स हैं। 

एन.सी.डी.आर.सी. के पास भी जा सकता है होम बायर्स शिकायत लेकर 
नोएडा के मामले में सुप्रीम कोर्ट नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रैसल कमिशन (एन.सी.डी.आर.सी.) को निर्देश दे चुका है कि कोई बिल्डर समय सीमा के भीतर होम बायर्स को उनके फ्लैट्स या घर की पोजैशन नहीं सौंपता तो होम बायर्स एन.सी.डी.आर.सी. के पास शिकायत कर सकता है। इसके अतिरिक्त अपने प्रदेश में रेरा के पास भी शिकायत दर्ज हो सकती है। 

क्या कहता है रेरा कानून
उपभोक्ताओं के अधिकार की सुरक्षा और पारदर्शिता लाने के वादे के साथ बहुत प्रतीक्षित रीयल एस्टेट अधिनियम रेरा 1 मई 2017 से लागू हो गया है। इस कानून के अंतर्गत डिवैल्पर्स को अब उन चल रही परियोजनाओं को पूरा करना होगा, जिन्हें पूर्णतया प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। साथ ही नए लांच होने वाले प्रोजैक्ट्स का रजिस्ट्रेशन भी 3 महीने के भीतर प्राधिकरण में कराना होगा। रेरा के तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्राधिकरण बनाना अनिवार्य है। 

होम बायर्स के हक में बात, बैंक बिल्डर से लें पैसा
आम्रपाली ग्रुप के खिलाफ  मामले में फ्लैट खरीदारों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बैंकों से साफ कहा है कि फ्लैट खरीदारों का पैसा फ्लैट खरीदारों का है। इसे कोई नहीं ले सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक से कहा कि आपने पैसा बिल्डर को दिया है न कि फ्लैट खरीदारों को। आप फ्लैट खरीदारों के पैसे नहीं ले सकते। आप बिल्डर की संपत्ति को ले सकते हैं। दरअसल सुनवाई के दौरान बैंक ऑफ बड़ौदा ने इंसॉल्वैंसी प्रक्रिया का मुद्दा उठाया था। बैंक ने कहा कि हमारे पैसे भी बिल्डर ने लिए हैं।

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