अच्‍छे संबंधों और समझौतों के बावजूद भारत का नेपाल पर निगाह रखना जरूरी

 नेपाल और भारत के संबंध यूं तो वर्षों से बेहतर रहे हैं लेकिन बीते कुछ समय में इन संबंधों में गिरावट देखने को मिली है। नेपाल में वामपंथी सरकार के बनने और उसका झुकाव चीन की तरफ होने की वजह से यह गिरावट देखने को मिली थी। चीन ने भी दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते कदमों को थामने के लिए नेपाल का खूब इस्‍तेमाल किया और संबंधों में आई गिरावट का खूब फायदा उठाया। हाल ही में भारत दौरे पर आए नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली का झुकाव भी चीन की तरफ साफतौर पर दिखाई दिया। ओली ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर कहा कि हम इस पर तटस्थ हैं। हमारे दो बड़े पड़ोसी हैं और दोनों से ही मित्रता के संबंध है। इस दौरान दोनों देशों के बीच कुछ समझौतों पर भी हस्‍ताक्षर हुए। लेकिन जानकारों का मानना है कि इन सभी के बावजूद नेपाल पर निगाह रखना बेहद जरूरी है। इसकी वजह जानकार नेपाल का चीन से झुकाव को मान रहे हैं।

नेपाल का चीन पर दांव
 
आपको बता दें कि भारत को दरकिनार करने के लिए चीन ने नेपाल को ऑप्टिकल फाइबर लिंक के जरिए इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। इससे नेपाल की इंटरनेट के लिए भारत पर निर्भरता खत्म हो गई है और चीन ने इस क्षेत्र में भारत का एकाधिकार समाप्त कर दिया है। इसके अलावा चीन ने दक्षिण एशिया में प्रवेश के लिए तिब्बत से हो कर नेपाल सीमा तक जाने वाला एक रणनीतिक हाईवे खोल दिया, जिसका इस्तेमाल नागरिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। 5476 किमी लंबा यह हाईवे शंघाई से लेकर तिब्बत में शिगेज हवाईअड्डे और शिगेज शहर से जुड़ा है। इसके साथ ही यह हाईवे आगे नेपाल बोर्डर पर चीन के इलाके झांगमु तक पहुंचा है। इस लिहाज से इस हाईवे के खुलने के बाद नेपाल की पहुंच तिब्‍बत और शंघाई तक सीधे हो गई है। वहीं दूसरी तरफ चीन ने नेपाल से रेल संपर्क स्‍थापित करने पर अपनी हामी भरी है। इसके चलते नेपाल तिब्‍बत के रास्‍ते सीधे चीन से जुड़ जाएगा। हालांकि चीन पहले से ही रेलवे को तिब्बती शहर शिगात्से से नेपाल सीमा पार गायरोंग तक बढ़ाने की योजना बना रहा है। इस लिहाज से चीन यहां पर अपनी कूटनीतिक और रणनीतिक चाल में कामयाब हुआ है।

 

भारत-चीन रेलमार्ग

 
हालांकि चीन के बढ़ते खतरे को भांपते हुए भारत ने भी नेपाल को रेल के रास्‍ते जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। इसको लेकर भारत और नेपाल के बीच एक समझौता भी हुआ है। इसके तहत बिहार के रक्सौल से काठमांडू तक विद्युतीकृत रेललाइन बिछाई जाएगी। इस परियोजना के पहले चरण के तहत एक साल के भीतर रूट के सर्वे का काम पूरा कर लिया जाएगा। नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच इसके अलावा कुछ दूसरे समझौतों पर भी हस्‍ताक्षर किए गए। एक अन्‍य समझौते के तहत नेपाल को जलमार्ग से समुद्र तक का रास्ता दिया जाएगा। सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को सागर से जोड़ा जाएगा। दोनों देशों के बीच नदी परिवहन को लेकर भी समझौता हुआ है।

भारत चीन के बीच कमर्शियल डील

नेपाल को ईंधन की सप्‍लाई को लेकर भी आईओसी पिछले वर्ष नेपाल से एक समझौता किया था जिसके तहत आईओसी नेपाल को सालाना 13 लाख टन की ईंधन सप्लाई करेगा और 2020 तक वह सप्लाई को दोगुना कर देगा। आपको यहां पर बता दें कि भारत से संबंधों में आई गिरावट के चलते नेपाल ने मार्च 2016 में केपी ओली सरकार ने चीन के साथ ईंधन उत्पादों की आपूर्ति को लेकर एक कमर्शियल समझौते पर भी दस्तखत किए थे। हालांकि यह एमओयू उस वक्त खारिज हो गया जब तीन महीने बाद ही ओली को अविश्वास प्रस्ताव के चलते प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

 

समझौतों के बावजूद निगाह रखनी जरूरी

नेपाल और भारत के बीच संबंधों पर ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के हर्ष वी पंत का मानना है कि भारत को नेपाल पर निगाह रखनी होगी, भले ही दोनों के बीच समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुए हों। उनके मुताबिक नेपाल में अभी तक जो भी सरकारें बनी हैं उनका झुकाव चीन की तरफ रहा है। नेपाल की सभी सरकारें कमोबेश चाइना कार्ड खेलती आई हैं। ओली इसमें पहले उदाहरण नहीं हैं बल्कि इस तरह के उदाहरण आगे भी देखने को मिल सकते हैं। चीन जिस तरह से नेपाल पर डोरे डाल रहा है उसको देखते हुए भी नेपाल पर निगाह रखना भारत के लिए जरूरी हो जाता है। उनका यह भी कहना है कि ओली ने मधेसी आंदोलन के वक्त उपजी परिस्थिति के लिए भारत को दोषी ठहराया था। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी सरकार के गिरने पर भी भारत को ही दोषी ठहराया था। उनके मुताबिक नेपाल भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। इस लिहाज से भी नेपाल पर निगाह रखना बेहद जरूरी हो जाता है।

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