केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों।
क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अन्र्तगत आती हैं?
सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अन्र्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अन्र्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अन्र्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है।
क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है?
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में दिए गए हैं। इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों।
अर्जी कहां जमा करें
कोई भी पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं। वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व हैं कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजें।
अर्जी स्वीकार न होने पर अर्थदण्ड का प्रावधान
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000रु. का दंड लगाने का अधिकार है, जिसने आपकी अर्जी स्वीकार करने से मना किया था.
सूचना समय-सीमा
यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना 35 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहां सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना 48 घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए।
नई दिल्ली। शेल कंपनियों पर कार्रवाई के तहत 11 लाख सक्रिय भारतीय कंपनियों में से एक तिहाई से अधिक कंपनियां डी-रजिस्टर्ड हो सकती हैं क्योंकि उन्होंने तीन वित्तीय वर्षों के लिए अपना रिटर्न दाखिल नहीं किया है। पिछले महीने से अब तक ऐसी करीब चार लाख कंपनियों को नोटिस भेजा जा चुका है।
इन कंपनियों ने साल 2013-14 और 2014-15 में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में रिटर्न दाखिल नहीं किया है। इन कंपनियों ने 2015-16 के वित्तीय वर्ष के लिए भी अपनी रिटर्न दाखिल नहीं किया है। हालांकि, इस साल रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।
श्रीनगर जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले में मंगलवार को आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ में एक शख्स के मारे जाने और 8 के घायल होने की खबर है। बडगाम के चदूरा इलाके में 2 आतंकियों के छिपे होने की सूचना के बाद सुरक्षाबलों ने इस इलाके में सुबह में सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। सुरक्षाबलों को इस मुठभेड़ में दो तरफ से चुनौती का सामना करना पड़ा। एक तरफ आतंकवादी थे, तो दूसरी तरफ आतंकियों से सहानुभूति रखने वाले पत्थरबाज लोग। ये लोग मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई में बाधा डालने की कोशिश करते रहे।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत कई दूसरे इलाकों में मीट मछली खाने वालों को आज दिक्कत का सामना करना पड़ेगा क्योंकि बूचड़खानों पर हो रही कार्रवाई के विरोध में मांस विक्रेताओं की हड़ताल में मटन और चिकन विक्रेताओं के बाद अब मछली कारोबारियों ने भी इस हड़ताल में शामिल होने का ऐलान किया है. प्रदेश में हड़ताल की वजह से मांस परोसने वाले होटल अब बंदी की कगार पर पहुंच गए हैं. 100 साल के इतिहास में लखनऊ का टुंडे कबाबी पहली बार बंद हुआ, हालांकि मांसाहार का होटल चलाने वाले कुछ लोगों ने अवैध बूचड़खाने बंद किए जाने का स्वागत किया है. उनका कहना है कि प्रदेश में अगर मांस की किल्लत हुई तो वह दिल्ली से मटन मंगवाएंगे
केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों।
क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अन्र्तगत आती हैं?
सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अन्र्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अन्र्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अन्र्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है।
क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है?
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 8 में दिए गए हैं। इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों।
अर्जी कहां जमा करें
कोई भी पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं। वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व हैं कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजें।
अर्जी स्वीकार न होने पर अर्थदण्ड का प्रावधान
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25000रु. का दंड लगाने का अधिकार है, जिसने आपकी अर्जी स्वीकार करने से मना किया था.
सूचना समय-सीमा
यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना 35 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहां सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना 48 घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए।